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आर्य सुधर्मा (भगवान् महावीर के प्रथम पट्टपर) भगवान् महावीर के परिनिर्वाण के पश्चात् वीर संवत् के प्रारम्भकाल में अर्थात् शक संवत् से ६०५ वर्ष पूर्व कार्तिक शुक्ला १ के दिन चतुर्विध संघ ने प्रार्य सुधर्मा को भगवान महावीर के प्रथम पट्टधर के रूप में नियुक्त किया। - भगवान् महावीर के समय संघ की व्यवस्था में अनुशासन एवं संगठन आदि की जो प्रमुख विशेषताएं थीं, उन्हें भगवान् के निवारण पश्चात् भी पार्य सुधर्मा ने बड़ी ही कुशलता के साथ यथावत् बनाये रखा।
प्राचार्य सुधर्मा के प्रशासन-कौशल, दूरदर्शिता और तपस्तेज का ही चमत्कार है कि उनके उत्तरवर्ती काल में अनेक बार अगणित प्रतिकूल परिस्थितियों के उपस्थित होने पर भी भगवान महावीर का धर्मसंघ इतने सुदीर्घ काल तक एक महान संघ के रूप में समीचीन रूप से चलता रहा और आज तक विविध बाह्य विभिन्नताओं के होते हुए भी वह अपने मूलभूत महान् सिद्धान्तों को अमूल्य थाती के रूप में सुरक्षित रख पाया है। धर्म संघ की वह पतितपावनी अध्यात्म-सरिता आज भी निर्बाध गति से निरन्तर चलती आ रही है। ... लगभग ढाई हजार वर्ष के प्रति दीर्घ प्रतीत की लम्बी अवधि में अगणित
आपत्तियों, विषम परिस्थितियों, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक क्रान्तियों, विप्लवों तथा दिल दहला देने वाले कई द्वादशवर्षीय दुष्कालों ने प्राचीन और अर्वाचीन सभी धर्मसंघों को बुरी तरह झकझोरा। उन संकटों की विकट घड़ियों में बौद्ध धर्म जैसे अनेक धर्मसंघ इस आर्य धरा से विलुप्त हो गये, किन्तु भगवान् महावीर द्वारा त्याग-तप व संगठन की सुदृढ़ नींव पर खड़े किये गये इस निर्ग्रन्थ संघ की प्रार्य सुधर्मा ने प्रभू महावीर द्वारा प्ररूपित नीति का पालन करते हुए ऐसी चिरस्थायी और दृढ़ व्यवस्था की कि भीषण से भीषण एवं प्रलयंकर क्रान्तियां भी इस धर्मसंघ की गहरी जड़ों को नहीं हिला सकीं।
फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि इन प्रतिकूल परिस्थितियों का भगवान् महावीर के धर्मसंघ पर बिलकुल ही प्रभाव नहीं पड़ा। लगातार प्रापत्तियों पर आपत्तियां आने के कारण अन्ततोगत्वा इस धर्मसंघ में भी अनेक विकृतियां उत्पन्न हुई और पर्याप्त हानियां उठानी पड़ी । प्राचार्य भद्रबाह के समय, प्राचार्य सुहस्ती के समय एवं आर्यवज्र के समय में पड़े दीर्घकालीन दुष्कालों के विनाशकारी कुप्रभाव के कारण श्रमणों के केवल स्मृतिपटल पर अंकित रहने वाले श्रुतशास्त्र में ही नहीं, अपितु आचरण में भी मन्दता आई। इस मंदता से धर्मसंघ का सर्वांग
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