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स्वाभिमान]
केवलिकाल : इन्द्रभूति गौतम सकता है ? प्रतीत होता है, वह कोई बहुत बड़ा ऐन्द्रजालिक है' जिसने बुद्धिमान. कहे जाने वाले देवों तक को छल लिया है और वे देव उसे सर्वज्ञ समझ कर उसकी वन्दना एवं स्तुति करने जा रहे हैं। मुझे तरस आता है इन देवताओं की बुद्धि पर कि जिस प्रकार कौवे तीर्थजल का, मेंढक पद्मसरोवर का, मक्खियां सुगन्धित गोशीर्ष चन्दन का, उष्ट्र अंगूर की वल्लरियों का, ग्राम शूकर क्षीरोदन का और उलूक प्रकाश का परित्याग कर अन्यत्र चले जाते हैं, ठीक उसी प्रकार ये देवगण भी इस पवित्र हविष्यान्न और मेरे जैसे सर्वज्ञ को छोड़ कर कहीं अन्यत्र भागे जा रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि जिस प्रकार का. वह नामधारी सर्वज्ञ है उसी प्रकार के ये देव भी हैं। ग्राम्य नट और मूर्ख ग्रामीणों जैसा यह कैसा हास्यास्पद संयोग है। खैर, कुछ भी हो पर में किसी भी दशा में इस सर्वज्ञता के ढोंगपूरणं नाटक को चूपचाप बैठे नहीं देख सकता। क्या आज तक कभी नील . गगन में एक साथ दो सूर्य उदित हुए हैं ? क्या एक ही गिरिगह्वर में कभी दो मृगराज एक साथ रह पाये हैं ? नहीं, नहीं, कदापि नहीं। तो ठीक उसी प्रकार मुझ जैसे सर्वज्ञ के रहते अन्य कोई सर्वज्ञ नहीं हो सकता। देवताओं और दानवों के देखते ही देखते अभी में जटिल प्रश्नों की झड़ी लगा उसे हतप्रभ कर उसकी सर्वशता के छम पावरण को उतार फेंकता हूं।"
ठीक उसी समय इन्द्रभूति के आदेश से वस्तुस्थिति का पता लगा कर कुछ व्यक्ति समवसरण से लौटे। उनकी आंखों से उनके मनोगत भावों को पढ़ते हुए इन्द्रभूति ने बड़ी व्यग्रता के साथ पूछा- "क्यों ? देख आये उस मायावी को ? कैमा है वह ऐन्द्रजालिक ?"
उनमें से एक ने कहा -- "हजारों जिह्वानों से भी उस अलौकिक विभूति का वर्णन नहीं किया जा सकता। जिस प्रकार सम्पूर्ण त्रिलोकी के समस्त प्राणियों की गरगना करने में कोई समर्थ नहीं हो सकता, ठीक उसी प्रकार करोड़ों सूर्यों के समान देदीप्यमान श्रमण भगवान् महावीर के अनन्त गुणों का वर्णन नहीं किया जा सकता। ईश्वर के समस्त गुणों का वर्णन करने में असमर्थ वेदों के "नेति, नेति" इस मन्त्र का वास्तविक अर्थ वस्तुतः आज ही हमारी समझ में आया है । भगवान् महावीर की गुणगाथा वर्णनातीत है, वह तो केवल प्रात्मानुभवगम्य ही है।"
अपने ही लोगों के मुख से श्रमण भगवान् महावीर की इस प्रकार की प्रशंसा सुन कर इन्द्रभूति तिलमिला उठे और बोले - "अवश्यमेव यह कोई महान धूर्त, माया का प्रादि-आवास है। बड़े आश्चर्य का विषय है कि सभी लोगों को इसने भ्रम में डाल दिया है। मैं तो निमेपमात्र के लिये भी दम महामायावी की सर्वज्ञता के. दावे को राहन नहीं कर सकता । क्योंकि घोर अन्धकार को विनष्ट एम मा इंदजालियोनि कलिऊग ममापण तिवाहिग्गियमा "प्रवर्गाम मे विउमवाय"नि भणिकग ...... .
उपन महापुरिसचनियं, पृ० ३०१)
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