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केवलिकाल
जिस प्रकार भगवान् ऋषभदेव से भगवान् महावीर के निर्वारण तक का काल तीर्थंकर-काल माना जाता है, उसी प्रकार तीर्थंकर-काल के पश्चात् का, वीर निर्वारण संवत् १ से वीर निर्वारण संवत् ६४ तक का काल जैन जगत् और जैन इतिहास में केवलिकाल के नाम से पहिचाना जाता है ।
आज से लगभग ढाई हजार ( २५००) वर्ष पहले कार्तिक कृष्णा मावस्या की अर्द्धरात्रि के पश्चात् प्रत्यूषकाल की वेला में भगवान् महावीर मोक्ष पधारे ।' भगवान् महावीर के उस निर्वारण समय से ही वीर निर्वाण संवत्सर का प्रारम्भ हुआ ।
वीर निर्वारण संवत् के प्रारम्भिक प्रथम दिन में ही अत्यन्त ऐतिहासिक महत्व की निम्नलिखित तीन प्रमुख घटनाएं घटीं :
(१) उसी निर्वारण रात्रि को म० बुद्ध के समवयस्क अवन्ती के महाराजा चण्डप्रद्योत (जिनका म० बुद्ध के जन्मदिन को ही जन्म हुआ था) का ५८ वर्ष की आयु में देहावसान और अवन्ती के राज्यसिंहासन पर चण्डप्रद्योत के पुत्र पालक का राज्याभिषेक |
( २ ) प्रथम गणधर इन्द्रभूति गौतम को केवलज्ञान की प्राप्ति | 3
(३) पंचम गणधर सुधर्मा स्वामी को भगवान् महावीर के प्रथम पट्टधर के रूप में प्राचार्य-पद प्रदान ।
पसकाल समयंसि संपलियंक निसन्ने कालगए सब्वदुक्खप्रहीणे ।
[ कल्पसूत्र, सू० १४६ सिवाना संस्करण ] 2. (क) सिरि जिरणनिव्वाणगमरणरयरिणए उज्जेरणीए चण्डपज्जो मरणे पालो राया हिसितो | [सिरि दुसमाकाल समरणसंघ थयं, प्रवचूरि (पट्टावली समु०, भा० १ ) ] (ख) जं रर्यारण सिद्धिगम्रो अरहा, तित्थयरो महावीरो ।
तं रयरिणमवंतिए महिसितो पालो राया ॥
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[ तित्थोगाली पन्ना, गा० ६२० ]
(ग) जक्काले वीरजिरणो, रिणस्सेयससंपयं समावण्णो । तक्काले प्रभिसितो, पालयणामो अवंतिसुदो ।। १५०५ ।।
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[तिलोयपण्णत्ती, अधिकार ४ ]
3 (क) जं रर्यारिंग व गं समणे भगवं महावीरे काल गए जाव सव्वंदुक्खप्पही गे तं रयरिंग च रणं जेट्ठस्स इंदभूइस्स केवलनारणदंसणे समुप्पन्ने । [ कल्प सू० सू० १२६ ( सिवाना सं० ) ]
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(स) जादो सिद्धो वीरो, तद्दिवसे गोदमो परमणाणी । जादो......।। १४७६ ।।
[तिलोयपण्णत्ती, अधिकार ४ ]
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