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भी ग्राज कहीं उपलब्ध नहीं है। यही कारण है कि इस द्वितीय भाग में मुख्यत: प्राचार्यों. वाचनाचार्यों, युग-प्रधानाचार्यों, कतिपय प्रभावक संतों एवं महत्तरा मतियों का तथा उनके समय की विशिष्ट घटनामों का ही परिचय प्रस्तुत कर पा रहे हैं।
भविष्य में शोध करते समय इन उपाध्याय, गणावच्छेदक आदि परम्परात्रों का यदि परिचय प्राप्त हुआ तो उसे समुचित रूप से यथा स्थान देने का प्रयास किया जायगा। अन्तःपरिचय
प्रस्तुत ग्रन्थ में जैन धर्म का वीर नि० सं० १ से १००० तक का इतिहास प्रस्तुत किया गया है। प्रत्येक पाठक निर्वाणोत्तर काल के एक हजार वर्ष के इतिहास को सहज ही हृदयंगम कर स्मति पटल पर अंकित कर सके, इस दृष्टि से इसे निम्नलिखित चार प्रकरणों में विभक्त कर दिया गया है :१. केवलिकाल
३. दशपूर्वधरकाल २. श्रुतकेवलिकाल
४. सामान्य पूर्वधरकाल १. केबलिकाल - श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही परम्परामों द्वारा वीर निर्वागण के पश्चात् समान रूप से इन्द्रभूति गौतम, प्राचार्य सुधर्मा और प्राचार्य जम्बू ये तीन केवली माने गये हैं पर इन तीनों केवलियों के मुख्यतः पृथक-पृथक एवं ग्रंशतः समुच्चय काल के सम्बन्ध में दोनों परम्पराओं का परस्पर मान्यता भेद पाया. जाता है। श्वेताम्बर परम्परा के सभी मान्य ग्रन्थों में इन्द्रभूति गौतम का १२ वर्ष, प्रार्य सुधर्मा का ८ वर्ष और प्रार्य जम्बू का ४४ वर्ष, इस प्रकार कुल मिला कर ६४ वर्ष का केवलिकान माना गया है।
जव कि दिगम्बर परम्परा में केवलिकाल विषयक दो प्रकार की मान्यताएं उपलब्ध होती हैं, उत्तर पुराण' और पुष्पदन्त-कृत अपभ्रंश भाषा के महापुराण' में इन्द्रभूति गौतम का १२ वर्ष, प्रार्य सुधर्मा का १२ वर्ष और जम्बू स्वामी का ४० वर्ष इस प्रकार कुल मिलाकर ६४ वर्ष का केवलिकाल माना गया है। धवला, श्रुतावतार, ब्रह्म हेमचन्द्रकृत श्रुतस्कन्ध' हरिवंश पुराण और नन्दि संघ की प्राकृत पट्टावली में समान रूप से इन तीनों केवलियों का प्रथक-पृथक केवलिकाल क्रमश: १२ वर्ष, १२ बर्ष और १८ वर्ष उल्लिखित करते हुए समुच्चय केवलिकाल ' उत्तर पुराण, पर्व ७६, पृ० ५३७ २ महा पुराण, संधि १००, पृ० २७४ 3 एट् ग्वण्डागम, वेदना म्ड-धवला, भा. ६, पृ० १३०-३१ ४ श्रुतावतार, लो० ७२-७६ ५ श्रुतस्कन्य, गाथा ६६, ६७ ६ हरिवंश पुरागा, मगं ६६, नो. २२ । • नन्दि मंध की प्राकृत पट्टावली, मा. १, २ .
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