________________
विद्वान् श्री जिन विजयजी, विद्वान् मुनि पं० कल्याण विजयजी, क्षुल्लक जिनेन्द्रवर्णी, पं० दलसुख मानवरिया, पं० हीरालालजी सिद्धान्त शास्त्री, डॉ० मोहनलाल मेहता, परामर्शदाता श्री अगरचन्दजी नाहटा, श्री दरबारीलालजी कोठिया आदि विद्वानों के साथ विविध विवादास्पद विषयों पर चर्चा कर प्रामाणिक निर्णय प्रस्तुत करने में भी राठोड़ ने पूर्ण सहयोग दिया। श्री राठोड़ के प्रहनिश गवेपण काही फल है कि इतिहास का आलेखन इतना सुन्दर सरस प्रमाणयुक्त वन पाया है ।
दिगम्बर परम्परा के प्रामाणिक ग्रन्थों-हरिवंश पुराण, धवला, श्रुतावतार, आदि पुराण, महापुराण पट्टावलियां, श्रवणबेलगोल के शिलालेखों ग्रादि के गहन अध्ययन के उपरान्त ही दिगम्बर परम्परा के आचार्यों के काल तथा परिचय आदि के सम्बन्ध में विवरण एवं निष्कर्ष प्रस्तुत किया गया है।
अन्त में हम एक बात स्पष्ट करना ग्रावश्यक समझते हैं । यद्यपि हमारा यह सतत प्रयास रहा है कि निर्वारण पश्चात् १००० वर्ष के इस इतिहास में किसी भी धार्मिक अथवा ऐतिहासिक महत्व की कोई घटना श्रालेखन से बची न रह जाय तथापि संभव है किसी महत्वपूर्ण घटना से सम्बन्धित प्राचीन ग्रन्थ, शिलालेख आदि के दृष्टिगोचर न होने प्रभृति अनेक कारणों से कतिपय महत्वपूर्ण घटनाओं का ग्रालेखन न किया गया हो । प्राणा है कि विद्वान् पाठक इस प्रकार की अथवा अन्य किसी प्रकार की कमियों को भविष्य में पूरा करने के लिये पूरा सहयोग प्रदान करेंगे ।
शिवमस्तु सर्वजगत: ।
Jain Education International
( १०६ )
For Private & Personal Use Only
मुनि: हस्तिमल्लः
www.jainelibrary.org