Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ [प्रज्ञापनासूत्रे पउमुष्पल-नलिणाणं सुभग-सोगंधियाण य। अरविंद-कोकणाणं सतवत्त-सहस्सवत्ताणं // 10 // बेंट बाहिरपत्ता य कणिया चेव एगजीवस्स / अभितरगा पत्ता पत्तेयं केसरा मिजा // 1 // वेणु णल इक्खुवाडियमसमासइख य इक्कडेरंडे / करकर सुठि विहुंगु तणाण तह पध्वगाणं च // 12 // अच्छि पब्वं बलिमोडो य एगस्स होति जोवस्स / पत्तेयं , पत्ताई पुफाई अणेगजीवाइं // 3 // पुस्सफलं कालिगं तुब तउसेलवालु वालुके / घोसाडगं पडोलं तियं चेव तेंदूसं // 14 // विटं गिरं कडाहं एयाहं होंति एगजीवस्स / पत्तेयं पत्ताई सकेसरमकेसरं मिजा // 5 // सप्फाए सज्जाए उब्वेहलिया य कुहण कंदुक्के / एए प्रणंतजीवा कंडुक्के होति भयणा उ // 66 // [54-8] पुष्प जलज (जल में उत्पन्न होने वाले) और स्थलज हों, वृन्तबद्ध हों या नालबद्ध, संख्यात जीवों वाले, असंख्यात जीवों वाले और कोई-कोई अनन्त जीवों वाले समझने चाहिए / / 6 / / जो कोई नालिकाबद्ध पुष्प हों, वे संख्यात जीव वाले कहे गए हैं। थूहर (स्निहका) के फल अनन्त जीवों वाले हैं। इसी प्रकार के (थूहर के फूलों के सदृश) जो अन्य फूल हों, (उन्हें भी अनन्त जीवों वाले समझने चाहिए।) // 87 // पद्मकन्द, उत्पलिनीकन्द और अन्तरकन्द, इसी प्रकार झिल्ली (नामक वनस्पति), ये सब अनन्त जीवों वाले हैं; किन्तु (इनके) भिस और मृणाल में एक-एक जीव है / 188|| पलाण्डकन्द (प्याज), लहसूनकन्द, कन्दली नामक कन्द और कुसुम्बक (कुस्तुम्बक या कुटुम्बक) (नामक वनस्पति) ये प्रत्येकजीवाश्रित हैं। अन्य जो भी इस प्रकार की वनस्पतियां हैं, (उन्हें प्रत्येकजीव वाली समझो / ) |89 // पद्म, उत्पल, नलिन, सुभग, सौगन्धिक, अरविन्द, कोकनद, शतपत्र और सहस्रपत्र-कमलों के वृत्त (डंठल), बाहर के पत्ते और कणिका, ये सब एकजीवरूप हैं / इनके भीतरी पत्ते , केसर और मिजा (अर्थात् - फल) भी प्रत्येकजीव वाले होते हैं 1160-61 / / वेणु (बांस), नल (नड), इक्षुवाटिक, समासेक्षु और इक्कड़, रंड, करकर, सुठी (सोंठ), विहुंगु (विहंगु) एवं दूब आदि तृणों तथा पर्व (पोर = गांठ) वाली वनस्पतियों के जो अक्षि, पर्व तथा बलिमोटक (गाठों को परिवेष्टन करने वाला चक्राकार भाग) हों, वे सब एकजीवात्मक हैं। इनके पत्र (पत्ते) प्रत्येकजीवात्मक होते हैं, और इनके पुष्प अनेकजीवात्मक होते हैं / / 92-93 / / पुष्यफल, कालिंग, तुम्ब, अपुष, एलवालुक (चिर्भट-चीभड़ा-ककड़ी), वालुक (चिर्भट-ककड़ी), तथा घोषाटक (घोषातक), पटोल, तिन्दुक, तिन्दूस फल, इनके सब पत्ते प्रत्येक जीव से (पृथक-पृथक् ) अधिष्ठित होते हैं। तथा वृन्त (डंठल), गुद्दा और गिर (कटाह) के सहित तथा केसर (जटा) सहित या अकेसर (जटारहित) मिजा (बीज), ये सब एक-एक जीव से अधिष्ठित होते हैं / / 64-65|| सप्फाक, सद्यात (सध्यात), उव्वेहलिया और कुहण तथा कन्दुक्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org