Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ [प्रज्ञापनासूत्र प्रत्येक जीव वाला है / इसी प्रकार के अन्य जितने भी (कन्द हों, उन्हें प्रत्येकजीव वाले समझो) // 67 / / टूटे हुए जिस स्कन्ध के भंगप्रदेश में हीर दिखाई दे, वह स्कन्ध प्रत्येकजीव वाला है। इसी प्रकार के और भी जितने स्कन्ध हों, (उन्हें भी प्रत्येकजीव वाले समझो।) // 68 / / जिस छाल के टूटने पर उसके भंग (प्रदेश) में हीर दिखाई दे, वह छाल प्रत्येक जीव वाली है / इसी प्रकार की अन्य जितनी भी छाले (त्वचाएँ) हों, (उन्हें भी प्रत्येकजीव वाले समझो।) // 66 // जिस शाखा के टूटने पर उसके भंग (प्रदेश) में विषम छेद दीखे, वह शाखा प्रत्येक जीव वाली है / इसी प्रकार की अन्य जितनी भी शाखाएँ हों, (उन्हें भी प्रत्येकजीव वाली समझनी चाहिए।) // 70 / / जिस प्रवाल के टूटने पर उसके भंगप्रदेश में विषमछेद दिखाई दे, वह प्रवाल भी प्रत्येकजीव वाला है / इसी प्रकार के और भी जितने प्रवाल हों, (उन्हें प्रत्येक जीव वाले समझो।) / / 71 / / जिस टूटे हुए पत्ते के भंगप्रदेश में विषमछेद दिखाई दे, वह पत्ता प्रत्येकजीव वाला है। इसी प्रकार के और भी जितने पत्ते हों, (उन्हें भी प्रत्येकजीव वाले समझो।) / / 72 / / जिस पुष्प के ट्टने पर उसके भंगप्रदेश में विषमछेद दिखाई दे, वह पुष्प प्रत्येकजीव वाला है। इसी प्रकार के और भी जितने (पुष्प हों, उन्हें प्रत्येकजीवो समझना चाहिए)॥७३।। जिस फल के टूटने पर उसके भंगप्रदेश में विषमछेद दृष्टिगोचर हो, वह फल भी प्रत्येकजीव वाला है। ऐसे और भी जितने (फल हों, उन्हें प्रत्येकजीव वाले समझने चाहिए।)।७४। जिस बीच के टूटने पर उसके भंग में विषमछेद दिखाई दे, वह बीज प्रत्येकजीव वाला है / ऐसे अन्य जितने भी बीज हों, (वे भी प्रत्येकजीव वाले जानने चाहिए) // 7 // [5] जस्स मूलस्स कट्ठामो छल्ली बहलतरी मवे। अणंतजीवा उ सा छल्लो, जा यावऽण्णा तहाविहा // 76 / / जस्स कंदस्स कट्ठामो छल्लो बहलतरी भवे / अणंतजीवा तु सा छल्ली, जा यावऽण्णा तहाविहा / / 77 / जस्स खंधस्स कट्ठामो छल्ली बहलतरी भवे / अणंतजीवा उ सा छल्ली, जा यावऽण्णा तहाविहा // 7 // जोसे सालाए कट्ठाओ छल्ली बलतरी भवे / अणंतजीवा उ सा छल्ली, जा यावऽण्णा तहाविहा // 79 // [54-5] जिस मूल के काष्ठ (मध्यवर्ती सारभाग) की अपेक्षा छल्ली (छाल) अधिक मोटी हो, वह छाल अनन्तजीव वाली है / इस प्रकार की जो भी अन्य छाले हों, उन्हें अनन्तजीव वाली समझनी चाहिए / / 76 // जिस कन्द के काष्ठ से छाल अधिक मोटी हो, वह अनन्तजीव वाली है। इसी प्रकार की जो भी अन्य छाले हों, उन्हें अनन्तजीव वाली समझना चाहिए // 77 // जिस स्कन्ध के काष्ठ से छाल अधिक मोटी हो, वह छाल अनन्तजीव वाली है। इसी प्रकार की अन्य जितनी भी छाले हों, (उन सबको अनन्तजीव वाली समझनी चाहिए / ) // 78 / / जिस शाखा के काष्ठ की अपेक्षा छाल अधिक मोटी हो, वह छाल अनन्तजीव वाली है। इस प्रकार जितनी भी छाले हों, उन सबको अनन्त जीव वाली समझना चाहिए // 79 // [6] जस्स मूलस्स कट्ठामो छल्ली तणुयतरी भवे / परित्तजीवा उ सा छल्ली, जा यावऽण्णा तहाविहा // 10 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org