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प्रस्तावना
गाथासूत्र
षट्खण्डागमके मूल सूत्रोंका आद्योपान्त पारायण करनेपर गद्यरूप सूत्रोंके अतिरिक्त गाथासूत्र भी वेदनाखण्डमें ५ और वर्गणाखण्ड में २८ उपलब्ध हैं । वेदनाखण्डके वेदनाभावविधानअनुयोगद्वारका वर्णन करते हुए उत्तरप्रकृतियोंके अनुभाग- सम्बन्धी अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा करनेके लिए पहले तीन गाथासूत्र दिये हैं और उन्हींके आधारपर आगे सूत्र -रचना करते हुए आ० भूतबलि कहते हैं
(
तो उसओ चउसट्ठिपदियो महादंडओ कादव्वो भवदि । '
(षट् खं० पृ. ६२१) अर्थात् इससे आगे अब चौसठ पदवाला महादण्डक कथन करनेके योग्य है । और इसके अनन्तर वे ५२ सूत्रोंके द्वारा उन तीन गाथाओंके पदोंका विवरण करते हैं । इस चौसठ पदिक अल्पबहुत्वकी उत्थानिकामें धवलाकार लिखते हैं
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इन तीन गाथाओं द्वारा कहे गये चौसठ पदवाले उत्कृष्ट अनुभागके अल्पबहुत्वसम्बन्धी महादण्डकके अर्थकी प्ररूपणार्थ मन्दबुद्धि जनोंके अनुग्रह के लिए आचार्य उत्तरसूत्र कहते हैं-"
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उन तीन गाथासूत्रों में पहली गाथा इस प्रकार है
" सादं जसुच्च दे कं ते आ वे मणु अनंतगुणहीणा | ओ मिच्छ के असादं वीरिय अणंताणु संजळणा ॥ १ ॥
"
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इस गाथाके एक एक शब्द या पदको लेकर आ० भूतबलिने १९ सूत्रोंकी रचना की है । यथा
सव्वमंदाणुभागं सादा वेदणीयं ॥ ६६ ॥ जसगित्ती उच्चागोदं च दो वि तुल्लाणि अतगुणहीणाणि ॥ ६७ ॥ देवगदी अनंतगुणहीणा ॥ ६८ ॥ कम्मइयसरीरमणंतगुणहीणं ॥ ६९॥ तेयासरीरमणंतगुणहीणं ॥ ७० ॥ आहारसरीरमणंतगुणहीणं ॥ ७१ ॥ वेउव्वियसरीरमणंतगुणहीणं ॥ ७२ ॥ मणुसगदी अनंतगुहीणा ॥ ७३ ॥ ओरालियसरीरमणंतगुणहीणं ॥ ७४ ॥ मिच्छत्त
• मणंतगुणहीणं ॥ ७५ ॥ केवलणाणावरणीयं केवलदंसणावरणीयं असादवेदणीयं वीरियंतराइयं च चत्तारवितुल्लाणि अनंतगुणहीणाणि ॥ ७६ ॥ अनंताणुबंधिलोभो अनंतगुणहीणो ॥ ७७ ॥ मायाविसेसहीणा || ७८ ॥ क्रोधो विसेसहीणो ॥ ७९ ॥ माणो विसेसहीणो ॥ ८० ॥ संजलणार लोभ अनंतगुणो ॥ ८१ ॥ माया विसेसहीणा ॥ ८२ ॥ कोधो विसेसहीणो ॥ ८३ ॥ माणो विसेसहीणो ॥ ८४ ॥ ( प्रस्तुत ग्रन्थ. ६२१-२२ )
यहां पर इतने बड़े उद्धरण देनेका प्रयोजन यह है कि पाठक स्वयं यह अनुभव कर सकें कि गाथा-पठित संकेतरूप एक एक शब्दसे किस प्रकार उसके पूरे अर्थका गद्यसूत्रोंके द्वारा
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