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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ४, ५१
असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती देवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ५१ ॥
अट्ठ चोहसभागा वा देसूणा ॥ ५२ ॥
सनत्कुमार कल्पसे लेकर शतार - सहस्रार कल्प तकके मिथ्यादृष्टि आदि चारों गुणस्थानवर्ती देवोंने अतीत और अनागत कालमें कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ॥ ५२ ॥
आणद जाव आरणच्चुदकप्पवासियदेवेसु मिच्छाइट्ठिप्प हुडि जाव असंजदसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ५३ ॥
आनत कल्पसे लेकर आरण - अच्युत तकके कल्पवासी देवोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती देवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ५३ ॥
छ चोदसभागा वा देसूणा फोसिदा ।। ५४ ।।
उक्त चारों गुणस्थानवर्ती आनतादि चार कल्पोंके देवोंने अतीत और अनागत कालकी अपेक्षा कुछ कम छह बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ॥ ५४ ॥
विहारवत्स्व स्थान और वेदना, कषाय, वैक्रियिक एवं मारणान्तिक समुद्घातको प्राप्त हुए ये देव लोकनालीके चौदह भागोंमेंसे छह भागोंका स्पर्श करते हैं । इससे अधिक स्पर्श न करनेका कारण यह है कि उनका चित्रा पृथिवीके उपरिम तलके नीचे गमन सम्भव नहीं है ।
णवगेवज्जविमाणवासियदेवेसु मिच्छादिट्टि पहुडि जाव असंजदसम्मादिट्ठीहि haडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ५५ ॥
नव ग्रैवेयक विमानवासी देवोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती देवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ५५ ॥
अणुद्दिस जाव सव्वट्टसिद्धिविमाणवासियदेवेसु असंजदसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो || ५६ ॥
नव अनुदिशोंसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तक के विमानवासी देवोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ५६ ॥
इंदियाणुवादे एइंदिय- बादर-सुहुम-पज्जत्तापज्जत्तएहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? सव्वलोगो ॥ ५७ ॥
इन्द्रियमार्गणा के अनुवाद से एकेन्द्रिय, एकेन्द्रिय पर्याप्त, एकेन्द्रिय अपर्याप्त; बादर एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त, बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त; सूक्ष्म एकेन्द्रिय, सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त और सूक्ष्म.
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