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१८०] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ६, ४२ सासणसम्मादिहि-सम्मामिच्छादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ ४२ ॥
उक्त तीनों प्रकारके तिर्यंच सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे वह एक समय मात्र होता है ॥ ४२ ॥
उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो ॥ ४३ ॥
नाना जीवोंकी अपेक्षा उक्त तीनों प्रकारके तिर्यंच सासादन और सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका उत्कृष्ट अन्तर पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र होता है ॥ ४३ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो, अंतोमुहुत्तं ।। ४४ ॥
एक जीवकी अपेक्षा सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि उक्त तीन प्रकारके तिर्यंच जीवोंका जघन्य अन्तर क्रमशः पल्योपमके असंख्यातवें भाग और अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ ४४ ॥
उक्कस्सेण तिणि पलिदोवमाणि पुनकोडिपुधत्तेणब्भहियाणि ॥ ४५ ॥
एक जीवकी अपेक्षा उक्त दोनों गुणस्थानवर्ती तीनों प्रकारके तिर्यंचोंका उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्वसे अधिक तीन पल्योपम मात्र होता है ॥ ४५ ॥
असंजदसम्मादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ ४६॥
उक्त तीनों तिर्यंच असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ ४६ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥४७॥
एक जीवकी अपेक्षा उपर्युक्त तीनों प्रकारके असंयतसम्यग्दृष्टि तिर्यंचोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त प्रमाण होता है ॥ ४७ ॥
उक्कस्सेण तिणि पलिदोवमाणि पुन्चकोडिपुधत्तेणब्भहियाणि ॥ ४८॥
एक जीवकी अपेक्षा उक्त तीनों असंयतसम्यग्दृष्टि तिर्यंचोंका उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्वसे अधिक तीन पल्योपम काल मात्र होता है ॥ ४८ ॥
संजदासंजदाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ?णाणाजीवं पडुच्च णस्थि अंतरं, णिरंतरं ।। ४९ ॥
तीनों प्रकारके संयतासंयत तिर्यंचोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ ४९ ॥
___एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ ५० ॥
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