________________
२, ३, १३६ ]
एगजीवेण अंतरानुगमे सम्मत्तमग्गणा
अधिदंसणी ओधिणाणिभंगो ॥ १२३ ॥
अवधिदर्शनी जीवोंके अन्तरकी प्ररूपणा अवधिज्ञानी जीवोंके समान है ॥ १२३ ॥ केवलदंसणी केवलणाणिभंगो ॥ १२४ ॥
केवलदर्शनी जीवोंके अन्तरकी प्ररूपणा केवलज्ञानी जीवोंके समान है ॥ १२४ ॥ लेस्सावादेण किण्हलेस्सिय-णीललेस्सिय काउलेस्सियाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि १ ।। १२५ ।।
[ ३८९
श्यामार्गणा के अनुसार कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोत लेश्यात्राले जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ! ॥ १२५ ॥
जण अंतमुत्तं ।। १२६ ।। उक्कस्सेण तेत्तीससागरोवमाणि सादिरेयाणि || कृष्ण, नील और कापोत लेश्यावाले जीवोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ १२६ ॥ तथा उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर कुछ अधिक तेतीस सागरोपम प्रमाण काल तक होता है । तेउलेस्सिय-पम्मलेस्सिय - सुक्कलेस्सियाण मंतरं केवचिरं कालादो होदि १ ॥ १२८ ॥ तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ल लेश्यावाले जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? ॥ १२८ ॥ जहणेण अंतमुत्तं ।। १२९ ।। उक्कस्सेण अनंतकालमसंखेज्जपोग्गलपरियङ्कं ॥ तेज, पद्म और शुक्ल लेश्यावाले जीवोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ १२९ ॥ तथा उनका उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात पुद्गल रिवर्तन प्रमाण अनन्त काल तक होता है ॥ १३० ॥ भवियाणुवादेण भवसिद्धिय- अभवसिद्धियाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि १ ॥ भव्यमार्गणानुसार भव्यसिद्धिक और अभव्यसिद्धिक जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? || णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ १३२ ॥
भव्यसिद्धिक और अभव्यसिद्धिक जीवोंका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ १३२ ॥ सम्मत्ताणुवादेण सम्माइडि-वेदगसम्माइट्ठि उवसम सम्नाइट्ठि सम्मामिच्छाइट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि १ ।। १३३ ।।
सम्यक्त्वमार्गणाके अनुसार सम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? ॥ १३३ ॥
Jain Education International
जहण्णेणंतोमुहुत्तं ॥ १३४ ॥|| उक्कस्सेण अद्धपोग्गल परियङ्कं देणं ।। १३५ ।। उक्त सम्यग्दृष्टि आदि जीवोंका अन्तर जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है १३४ ॥ तथा उनका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्ध पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण काल तक होता है ॥ १३५ ॥ खइय सम्माइट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि १ ॥ १३६ ॥ क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? ॥ १३६ ॥
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org