Book Title: Shatkhandagam
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, 
Publisher: Walchand Devchand Shah Faltan

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Page 882
________________ ५, ४, ३३०] बंधगाणियोगद्दारे सरीरपरूवणाए पदेसविरओ [७५७ उववादिमस्स णिव्वत्तिट्ठाणाणि जीवणीयट्ठाणाणि च दो वि तुल्लाणि संखेज्जगुणाणि ॥ ३१८ ॥ ___ उससे औपपादिक जीवके निर्वृत्तिस्थान और जीवनीयस्थान दोनों ही तुल्य होकर संख्यातगुणे हैं ॥ ३१८ ॥ उक्कस्सिया णिव्यत्ती विसेसाहिया ॥३१९ ॥ उनसे उत्कृष्ट निवृत्ति विशेष अधिक है ॥ ३१९ ॥ तस्सेव पदेसविरइयस्स इमाणि छ अणियोगद्दाराणि- जहणिया अगट्ठिदी अग्गद्विदिविसेसो अग्गहिदिट्ठाणाणि उक्कस्सिया अग्गट्ठिदी भागाभागाणुगमो अप्पाबहुए त्ति॥ उसी प्रदेशविरचितके ये छह अनुयोगद्वार हैं- जघन्य अप्रस्थिति, अग्रस्थितिविशेष, अग्रस्थितिस्थान, उत्कृष्ट अग्रस्थिति, भागाभागानुगम और अल्पबहुत्त्व ॥ ३२० ॥ सव्वत्थोवा ओरालियसरीरस्स जहणिया अग्गद्विदी ॥ ३२१ ॥ अग्गडिदिविसेसो असंखेज्जगुणो ॥३२२॥ अग्गद्विदिट्ठाणाणि रूवाहियाणि विसेसाहियाणि ॥३२३॥ उक्कस्सिया अग्गद्विदी विसेसाहिया ॥ ३२४ ॥ _____ औदारिकशरीरकी जघन्य अग्रस्थिति सबसे स्तोक है ॥ ३२१ ॥ उससे अग्रस्थितिविशेष असंख्यातगुणा है ॥ ३२२ ॥ उससे अग्रस्थितिस्थान रूपाधिक विशेष अधिक हैं ॥ ३२३ ॥ उनसे उत्कृष्ट अग्रस्थिति विशेष अधिक है ॥ ३२४ ॥ एवं तिण्णं सरीराणं ।। ३२५॥ जिस प्रकार औदारिकशरीरके विषयमें पूर्वोक्त चार अनियोगद्वारोंकी प्ररूपणा की गई है उसी प्रकार वैक्रियिक, तैजस और कार्मण इन तीन शरीरोंके विषयमें भी उक्त अनियोगद्वारोंकी प्ररूपणा जानना चाहिये ॥ ३२५ ॥ सव्वत्थोवा आहारसरीरस्स जहणिया अग्गद्विदी ॥ ३२६ ॥ अग्गहिदिविसेसो संखेज्जगुणो ॥ ३२७ ॥ अग्गद्विदिवाणाणि रूवाहियाणि ॥ ३२८ ॥ उक्कस्सिया अग्गद्विदी विसेसाहिया ॥ ३२९ ॥ __ आहारकशरीरकी जघन्य अग्रस्थिति सबसे स्तोक है ॥ ३२६ ॥ उससे अग्रस्थितिविशेष संख्यातगुणा है ॥ ३२७ ॥ उससे अग्रस्थितिस्थान रूपाधिक हैं ॥ ३२८ ॥ उनसे उत्कृष्ट अग्रस्थिति विशेष अधिक है ॥ ३२९ ॥ भागाभागाणुगमेण तत्थ इमाणि तिण्णि अणियोगद्दाराणि-जहण्णपदे उक्कस्सपदे अजहण्ण-अणुक्कस्सपदे ॥ ३३० ॥ भागाभागानुगमकी अपेक्षा वहां ये तीन अनुयोगद्वार हैं- जघन्यपद विषयक, उत्कृष्ट पदविषयक और अजघन्य-अनुत्कृष्टपद विषयक ॥ ३३० ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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