Book Title: Shatkhandagam
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, 
Publisher: Walchand Devchand Shah Faltan

Previous | Next

Page 886
________________ ५, ४, ३८२ ] बंधणाणियोगद्दारे सरीरपरूवणाए पदेसविरओ अपढम हम अचरिमेसु गुणहाणिट्ठाणंतरेसु पदेसग्गमसंखेज्जगुणं ॥ ३७० ॥ उससे अप्रथम-अचरमगुणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशा असंख्यातगुणा है ॥ ३७० ॥ अपढमेसु गुणहाणिट्ठाणंतरेसु पदेसग्गं विसेसाहियं ॥ ३७१ ॥ उससे अप्रथम गुणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशाम विशेष अधिक है || ३७१ ॥ पढमे गुणहाणिट्ठाणंतरे पदेसग्गं विसेसाहियं ॥ ३७२ ॥ उससे प्रथम गुणहानिस्थानान्तरों में प्रदेशाम विशेष अधिक है ॥ ३७२ ॥ अपढम-अरिमासु दिीसु पदेसग्गं विसेसाहियं ॥ ३७३ ॥ उससे अप्रथम-अचरम स्थितियों में प्रदेशाय विशेष अधिक है || ३७३ ॥ अपढमाए हिदीए पदेसग्गं विसेसाहियं ।। ३७४ ॥ उससे अप्रथम स्थितिमें प्रदेशाम विशेष अधिक है ॥ ३७४ ॥ अचरिमेसु गुणहाणिट्ठाणंतरेसु पदेसग्गं विसेसाहियं ।। ३७५ ।। उससे अचरम गुणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशाम विशेष अधिक है ॥ ३७५ ॥ अरिमा द्विदीए पदेसग्गं विसेसाहियं ।। ३७६ ॥ उससे अचरम स्थितिमें प्रदेशा विशेष अधिक है ॥ ३७६ ॥ छ. ९६ सव्वासु हिंदी सव्वे गुणहाणिट्ठाणंतरेसु पदेसग्गं विसेसाहियं ॥ ३७७ ॥ उससे सब स्थितियों और सब गुणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशाम विशेष अधिक है ||३७७॥ एवं तिष्णं सरीराणं ॥ ३७८ ॥ जिस प्रकार औदारिकशरीरके जघन्य उत्कृष्ट पदविषयक अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा की गई है उसी प्रकार वैक्रियिक, तैजस और कार्मण इन तीन शरीरोंके भी उक्त अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा जानना चाहिए || ३७८ ॥ ७६१ जहण्णुक्कस्सपदेण सव्वत्थोवं आहारसरीरस्स चरिमाए द्विदीए पदेसग्गं || ३७९॥ जघन्य उत्कृष्ट पदकी अपेक्षा आहारकशरीर की अन्तिम स्थितिमें प्रदेशा सबसे स्तोक है । पढमाए द्विदीए पदेसरगं संखेज्जगुणं ॥ ३८० ॥ उससे प्रथम स्थितिमें प्रदेशाग्र संख्यातगुणा है || ३८० ॥ चरिमे गुणहाणिट्ठाणंतरे पदेसग्गमसंखेज्जगुणं ।। ३८१ ॥ उससे अन्तिम गुणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशाग्र संख्यातगुणा है || ३८१ ॥ अपढम अचरिमेसु गुणहाणिट्ठाणंतरेसु पदेसग्गं संखेज्जगुणं ॥ ३८२ ॥ उससे अप्रथम-अचरम गुणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशाग्र संख्यातगुणा है || ३८२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910 911 912 913 914 915 916 917 918 919 920 921 922 923 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933 934 935 936 937 938 939 940 941 942 943 944 945 946 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966