Book Title: Shatkhandagam
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, 
Publisher: Walchand Devchand Shah Faltan

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Page 916
________________ ५, ६, ७५७ ] बंधणाणियोगद्दारे चूलिया [ ७९१ भासादव्ववग्गणाणमुवरिमगहणदव्ववग्गणा णाम ॥ ७४५॥ भाषाद्रव्यवर्गणाओंके ऊपर अग्रहणद्रव्यवर्गणा होती है ।। ७४५ ॥ अगहणदव्ववग्गणा णाम का ? ॥ ७४६ ॥ अगहणदव्यवग्गणा भासादव्यमधिच्छिदा मणदव्वं ण पावेदि ताणं दव्याणमंतरे अगहणदव्ववग्गणा णाम ॥ ७४७ ॥ अग्रहणद्रव्यवर्गणा किसे कहते हैं ? ॥ ७४६ ॥ अग्रहणद्रव्यवर्गणा भाषाद्रव्यवर्गणासे प्रारम्भ होकर जब तक मनोद्रव्यको नहीं प्राप्त होती है तब तक उन द्रव्योंके मध्यमें जो वर्गणा होती है उसका नाम अग्रहणद्रव्यवर्गणा है ॥ ७४७ ।। अगहणदव्यवग्गणाणमुवरि मणदव्यवग्गणा णाम ।। ७४८ ॥ अग्रहणद्रव्यवर्गणाओंके ऊपर मनोद्रव्यवर्गणा होती है ।। ७४८ ॥ मणदव्ववग्गणा णाम का ? ॥ ७४९ ॥ मणदव्ववग्गणा चउव्विहस्स मणस्स गहणं पवत्तदि ॥ ७५० ॥ सच्चमणस्स मोसमणस्स सच्चमोसमणस्स असच्चमोसमणस्स जाणि दव्वाणि घेत्तूण सच्चमणत्ताए मोसमणत्ताए सच्चमोसमणत्ताए असच्चमोसमणत्ताए परिणामेदूण परिणमंति जीवा ताणि दव्वाणि मणदव्ववग्गणा णाम ॥ ७५१॥ ___ मनोद्रव्यवर्गणा किसे कहते हैं ? ॥ ७४९ ॥ मनोद्रव्यवर्गणा चार प्रकारके मनरूपसे ग्रहण होकर प्रवृत्त होती है । ७५० ॥ सत्यमन, मुषामन, सत्यमृषामन और असत्यमृषामनके जिन द्रव्योंको ग्रहणकर और उन्हें सत्यमन, मृषामन, सत्यमृषामन और असत्यमृषामनरूपसे परिणमा कर जीव परिणत होते हैं उन द्रव्योंका नाम मनोद्रव्यवर्गणा है ॥ ७५१ ॥ मणदव्ववग्गणाणमुवरिमगहणदव्यवग्गणा णाम ॥ ७५२ ॥ मनोद्रव्यवर्गणाओंके ऊपर अग्रहणद्रव्यवर्गणा होती है ।। ७५२ ॥ अगहणदव्यवग्गणा णाम का ? ॥ ७५३ ॥ अगहणदव्यवग्गणा [मण] दव्यमधिच्छिदा कम्मइयदव्वं ण पावदि ताण दव्याणमंतरे अगहणदव्यवग्गणा णाम ॥ ७५४ ॥ अग्रहणद्रव्यवर्गणा किसे कहते हैं ? ॥ ७५३ ॥ अग्रहणद्रव्यवर्गणा मनोद्रव्यवर्गणासे प्रारम्भ होकर जब तक कार्मणद्रव्यको नहीं प्राप्त होती हैं तब तक उन दोनों द्रव्योंके मध्यमें जो होती है उसका नाम अग्रहणद्रव्यवर्गणा है ॥ ७५४ ।। अगहणदव्ववग्गणाणमुपरि कम्मझ्यदव्यवग्गणा णाम ॥ ७५५ ॥ अग्रहणद्रव्यवर्गणाओंके ऊपर कार्मणद्रव्यवर्गणा होती है ॥ ७५५ ।। कम्मइयदव्ववग्गणा णाम का ? ॥ ७५६॥ कम्मइयदव्ववग्गणा अट्टविहस्स कम्मस्स गहणं पवत्तदि ।। ७५७ ।। णाणावरणीयस्स दंसणावरणीयस्स वेयणीयस्स मोहणीयस्स आउअस्स णामस्स गोदस्स अंतराइयस्स जाणि दव्वाणि घेत्तूण णाणावरणीयत्ताए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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