Book Title: Shatkhandagam
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, 
Publisher: Walchand Devchand Shah Faltan

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Page 944
________________ शुद्धि-पत्रक [ ८१९ पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध पाठ शुद्ध पाठ . हो, कला-चातुर्यसे रहित हो, पांच इन्द्रियोंके विषयोंमें लम्पट हो, मानी हो, मायावी हो, आलसी हो, तथा डरपोंक हो, ऐसे जीवको ४४ ९ जो अतिशय जो काम करनेमें मन्द हो, वर्तमान कार्य करनेमें विवेक-रहित हो, कलाचातुर्यसे रहित हो, पांच इन्द्रियोंके विषयोंमें लम्पट हो, मानी हो, मायावी हो, आलसी हो, डरपोक हो, अतिशय ५६ १० भागहरका भागहारका ५७८ अर्थ इष्ट नहीं है। अर्थ इष्ट नहीं है । परमगुरुके उपदेशानुसार अप्रमत्तसंयत जीवोंका प्रमाण दो करोड छयानवे लाख निन्यानवे हजार एक सौ तीन २९६९९१०३ है। १९ उसप्पिणीहि उस्सप्पिणीहि ६४ २६ गुनस्थानसे गुणस्थानसे ६ पडिभागण पडिभागेण १० आणियट्टि अणियट्टि २६ ओघ ओघं १८ असखज्जदिभागे असंखेज्जदिभागे ८ पुरसवेदेसु पुरिसवेदएसु १३ णवंसयवेदेसु णqसयवेदएसु ९ सम्यमिथ्यादृष्टि सम्यग्मिथ्यादृष्टि १०३ २३ उसके नीचे मेरुके नीचे २३ सासदनसम्यग्दृष्टि सासादनसम्यग्दृष्टि २ भवनवासिय भवणवासिय १८ सम्यमिथ्यादृष्टि सम्यग्मिथ्यादृष्टि ११६ ३ कवडियं केवडियं १३०८ जीव मिथ्यात्वको जीव सम्यग्मिथ्यात्वको ०७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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