Book Title: Shatkhandagam
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, 
Publisher: Walchand Devchand Shah Faltan

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Page 946
________________ पंक्ति २० १८ २९ २ १४ ३०९ ३१० ३११ ३११ ५ २३ १७ पृष्ठ २४९ २५१ २५६ २६२ २६२ २६३ २६५ २७२ २७३ ७ रूहिर० २७४ ९ उज्जोवणाणामं २७८ १ २७९ २ एकिसे २८२ १ पचण्हं २८२ ८, १७, २७ प्रमत्तसंयतसे लेकर अनिवृत्तिकरण अनिवृत्तिकरणसंयत के पर्यन्त संयत के २८२ २८३ २८६ २८७ २९० २९१ २९२ ३०१ २४ ३०४ १ ३०७ १६ २१ ६ १३ ९, १६ Jain Education International अशुद्ध पाठ १६ २६ उमशामक जोवों में वीज अंतरायं ये वे बाह्य पदार्थों भी एक साथ श्रद्धा औदारिकशरिरके अचक्क्खु० - मेकम्हि संयतके पचहं ८ ४ अप्सत्थविहायगदी २० ४ २६ शुद्धि पत्रक साधारणसरीर निमिणं औदारिक शरी आंगोपांग कर्मों की स्थितिका यह उत्कृष्ट देवायुका बन्ध प्रमाण होता है । शुद्ध पाठ कम्मठिदी - कोडीओ और प्रायोग्य इन चार लब्धियोंकी प्रायोग्यलब्धि है । उपशामक जीवों में जीव अंतराइयं ये बहु आदि पदार्थोंको भी समान श्रद्धा औदारिकशरीर के रुहिर० उज्जीवणा मं अचक्खु० किस्से पंचहं [ ८२१ - मेकहि अनिवृत्तिकरणसंयतके पंचहे अप्पसत्थविहायगदी साधारणशरीर णिमिणं औदारिकशरीर-आंगोपांग कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिका यह देवायुकी उत्कृष्ट स्थितिका बंध प्रमाण अर्थात् एक सागरोपम होता है । कम्मट्ठदी - कोडीए प्रायोग्य और करण इन पांच लब्धियोंकी प्रायोग्यलब्धि है | अधःकरण, अपूर्वकरण, और अनिवृत्तिकरणरूप परिणामों की प्राप्तिको करणलब्धि कहते हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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