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पंक्ति
२२
६५३
६५४
पृष्ठ
६४५
६४६ ४
६४८ १९ बज्झमाणिया उदिण्णा च
६४८
२७ उदीरणा ६५० ८ उदिष्णफलपत्तविवागवेयणा
६५० १५
६५०
६५० २५
अशुद्ध पाठ
वेदन होता है वह
उक्त
६५१ २ है, कारण
९ अनुयोगाद्वार
६ चउव्विहोदव्वदो इन स्थानों में
असंख्यातगुण
कर्मों क
२४ अवट्टिदा
अवस्थित
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६५६ १६
६६०
२३
६६२ ३ संखेज्जगुणन्भहिया असंखेज्ज० १८ संखेज्जब्भागवहिया आदि स्थानों में
६६२
६६४
३
वेदनीयकी अपेक्षा
असंख्यातगुणी होती है
चउव्विहे
जिस ज्ञानावरणीयकी
उकसिया
६६४ २७
६६९
२९
६७०
२४
६७१
१
६७२ २
६७२ १२ उकसा
६७२ २३ इस प्रकार
६७२ २४
सत्ताणं
६७६ ८
६७८
८
छक्खंडागम
६८१
३
६८२
१४
६८३ १५ दुभागूणो
६८३
१७
द्वितीय भाग
अंतरायवेयणा छण्णं वेयणा
प्रबद्धार्थ से उक्त तीन गुणित - सहस्सओ
शुद्ध पाठ
वेदन होता है, या वेदन किया जावेगा, वह
इस
बज्झमाणिया च उदिण्णा च
उदिण्णा
उदिण्णा फलपत्तविवागा वेयणा
क्योंकि
अदा
अस्थित
है, इस कारण अनुयोगद्वार चउव्वहो - दव्वदो
इन चार स्थानों में असंख्यातगुणी
संखेज्जगुणन्भहिया वा असंखेज्ज • संखेज्जभागब्भहिया
आदि चार स्थानोंमें
वेदनीयकी वेदना
असंख्यातगुणी अधिक होती है विहो
जिस जीवके ज्ञानावरणीयकी
उकस्सिया
उक्कस्सा
इसी प्रकार
सत्तणं
अंतराइयवेणा
छष्णं कम्माणं णामवज्जाणं प्रबद्धार्थतासे गुणित - सहस्सिओ
दुभागो दो भाग
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