Book Title: Shatkhandagam
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, 
Publisher: Walchand Devchand Shah Faltan

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Page 964
________________ सिद्धान्त-शब्द-परिभाषा [८३९ आगमको भंगविधिविशेष कहते हैं। भाषाद्रव्यवर्गणा - जो पुद्गलवर्गणाएं वचनरूपसे परिणत होती हैं, उन्हें भाषाद्रव्यवर्गणा कहते हैं । मति - जानी हुई वस्तुके मनन अर्थात् पुनः पुनः स्मरण करनेको मति कहते हैं । मनोद्रव्यवर्गणा - मनरूपसे परिणत होनेवाली पौद्गलिक वर्गणाओंको मनोद्रव्यवर्गणा कहते हैं । मन्दसंक्लेशपरिणाम - मन्द (अल्प) संक्लेशवाले परिणामोंको मन्दसंक्लेशपरिणाम कहते हैं । महास्कन्धद्र व्यवर्गणा - आठों पथिवियाँ, समस्त विमानपटल और नरकप्रस्तार आदि स्कन्धोंके समदायरूप वर्गणाओंको महास्कन्धद्रव्यवर्गणा कहते हैं। महास्कन्धस्थान - समस्त पथिवियाँ, कूट, भवन, विमान एवं नरकपटल आदि महास्कन्धके स्थान कहलाते हैं। मार्गणा - जिन धर्मविशेषोंके द्वारा जीवोंका चौदह गुणस्थानोंमें मार्गण-अन्वेषण किया जाता है, उन्हें मार्गणा कहते हैं । मार्गणा - जिसके द्वारा अवग्रहसे जाने हुए पदार्थ के विशेषका अनुमार्गण किया जावे, उसे मार्गणा कहते हैं। यह ईहाका पर्यायवाची नाम है। मार्गवाद - मार्ग नाम पथ या रास्तेका है। नरक, स्वर्ग और मोक्ष आदिके मार्गका कथन करनेवाले आगमको मार्गवाद कहते हैं । मीमांसा -- जिसके द्वारा अवग्रहसे गृहीत पदार्थकी मीमांसा अर्थात विचारणा की जावे, ऐसे ईहाज्ञानका दूसरा नाम मीमांसा है। मेधा - जिसके द्वारा पदार्थ जाना जावे ऐसी बुद्धिको मेधा कहते हैं। प्रस्तुत ग्रन्थमें यह शब्द अवग्रहके पर्यायवाचीके रूपमें प्रयुक्त हुआ है। यस्थितिबन्ध - अबाधा सहित कर्मकी जो स्थिति बंधी है उसे यत्स्थितिबन्ध कहते हैं। यवमध्य - यव (जौ) के आकार जो रचना होती है, उसके मध्य भागको यवमध्य कहते हैं। युति - द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावकी अपेक्षा जीवादि द्रव्योंके संयोगको युति कहते है। योग - आत्मप्रदेशोंके संकोच-विकोचको योग कहते हैं। योगयवमध्य - आठ समयवाले योगस्थानोंको योगयवमध्य कहते हैं। राजु - जगच्छेणीके सातवें भागको राज कहते हैं। लब्धि - कर्मोंके क्षयोपशमविशेषको लब्धि कहते हैं। अन्तराय कर्मके क्षयसे प्राप्त होनेवाली दानादि शक्तियोंको भी लब्धि कहते हैं । सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रकी प्राप्तिको भी लब्धि कहते हैं। लव - सात स्तोक प्रमाण कालको लव कहते है । लोकनाली - लोकके मध्य में अवस्थित त्रसनालीको लोकनाली कहते हैं। लोकोत्तरीयवाद - लोकोत्तर शब्दका अर्थ अलोक है। अलोकाकाशके वर्णन करनेवाले आगमको लोकोत्तरीय वाद कहते हैं। लौकिकवाद - लोकका अर्थात् षट् द्रव्योंसे भरे हुए ऊर्ध्व, मध्य और अधोलोकका वर्णन करनेवाले आगमको लौकिकवाद कहते हैं। वर्ग - किसी विवक्षित राशिको उसी राशिसे गुणित करनेपर जो राशि उत्पन्न होती है, वह वर्ग कहलाती है। यह गणना सम्बन्धी वर्ग है। अनन्त अविभागप्रतिच्छेदोंके पुंजको वर्ग कहते हैं। एक जीवप्रदेशके अविभागप्रतिच्छेदोंका नाम वर्ग है । अथवा, सबसे मन्द अनुभागवाले परमाणुको लेकर उसके एक मात्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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