Book Title: Shatkhandagam
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, 
Publisher: Walchand Devchand Shah Faltan

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Page 963
________________ ८३८ ] छक्खंडागम परिशातनकृति - विवक्षित शरीरके पुद्गलस्कन्धोंकी संचयके विना जो निर्जरा होती है, उसे परिशातनकृति कहते हैं। पर्याप्तनिवृत्ति - पर्याप्तियोंकी पूर्णताको पर्याप्तनिवृत्ति कहते हैं । पूजा - इन्द्रध्वज, सर्वतोभद्र, अष्टान्हिक इत्यादि महिमाविधानको पूजा कहते हैं। अर्चा या अर्चना सामान्य पूजनका नाम है और पूजा विशिष्ट पूजनको कहते हैं । पूर्व -- चौरासी लाख वर्षोंको पूर्वांग कहते हैं और चौरासी लाख पूर्वांगोंका एक पूर्व होता है । पूर्वकोटी - एक करोड पूर्व वर्षोंके समुदायात्मक कालको पूर्वकोटी कहते हैं। पृच्छाविधि - द्रव्य, गुण और पर्यायके विधि-निषेधविषयक प्रश्नका नाम पृच्छा है, ऐसी पृच्छाका और प्रायश्चित्तका विधान करनेवाले आगमको पृच्छाविधि कहते हैं। पैशुन्य - क्रोधादिके वश होकर जो दूसरोंके दोषोंको प्रकट किया जाता है उसका नाम पैशन्य है। प्रकृतिसमदाहार - कर्मप्रकृतियोंके वर्णन करनेवाले अनुयोगद्वारोंके समुदायको प्रकृतिसमुदाहार कहते हैं। प्रकृत्यर्थता – कर्मोकी प्रकृतियोंके प्रतिपादन करनेवाले अनुयोगद्वारको प्रकृत्यर्थता अनुयोगद्वार कहते हैं । प्रतिष्ठा - जिस बुद्धिके भीतर विनाशके विना अर्थ प्रतिष्ठित रहें उसे प्रतिष्ठा कहते हैं। यह धारणाका दूसरा नाम है। प्रतीच्छना - आचार्य भट्टारकों के द्वारा कहे जानेवाले अर्थ के निश्चय करनेका नाम प्रतीच्छना है। प्रत्यामुण्डा - जिसके द्वारा मीमांसित अर्थका संकोच किया जाय, उसे प्रत्यामुण्डा कहते हैं । यह अवायज्ञानका पर्यायवाची नाम है। प्रदेश - आकाशके जितने स्थानमें एक अविभागी पुद्गल परमाणु रहे, उसे प्रदेश कहते हैं। प्रदेशविरच - आनेवाले कर्मप्रदेशोंकी निषेकरूपरो कर्मस्थितिके भीतर रचना होनेको प्रदेशविरच कहते हैं। प्रबन्धनकाल - उपक्रमण और अपक्रमणकालके समुदायको प्रबन्धनकाल कहते हैं ।। प्रवचन - कुतीर्थोके द्वारा जिनका खण्डन न किया जा सके, ऐसे प्रकृष्ट वचनोंके समुदायरूप द्वादशाग श्रुतको प्रवचन कहते हैं। प्रवरवाद - प्रवर नाम रत्नत्रयस्वरूप मोक्षमार्गका है, उसका वाद अर्थात् कथन करनेवाले आगमको प्रवरवाद ___ कहते हैं। बादर - बादर नामकर्म के उदय युक्त जीवको बादर कहते हैं। बादरनिगोद - जिनके बादर नामकर्मका उदय है ऐसे मूली, अदरक, सुरण आदि निगोदिया जीवोंके ___ समुदायको बादरनिगोद कहते हैं। बादरनिगोवद्रव्यवर्गणा -जिन पौदगलिक वर्गणाओंके द्वारा बादर निगोदिया जीवोंके शरीरका निर्माण हो, उन्हें बादरनिगोदद्रव्यवर्गणा कहते हैं। बादरयुग्म - जिस राशिको चारसे भाजित करनेपर दो शेष रहें, उसे बादरयुग्मराशि कहते हैं । बुद्धि - जो ज्ञान ईहाके विषयभूत पदार्थको ग्रहण किया करता है, उसे बुद्धि कहते हैं । प्रस्तुत ग्रन्थ (पृ.७००) में यह पद अवाय ज्ञानके लिए प्रयुक्त हुआ है। भवस्थिति -- मनुष्य व तिर्यंच आदि किसी एक भवकी स्थितिको भवस्थिति कहते हैं। भंगविधि - भंग नाम वस्तुके विनाशका है। वह विनाश उत्पाद और ध्रौव्यका अविनाभावी है। अतः उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यरूप वस्तुके स्वरूपका विधान करनेवाले आगमको भंगविधि कहते हैं। भंगविधिविशेष - बत, शील व संथमादिके भेदोंको भंग कहते हैं। उनकी विधिविशेषके वर्णन करनेवाले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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