Book Title: Shatkhandagam
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, 
Publisher: Walchand Devchand Shah Faltan

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Page 949
________________ ८२४ ] छक्खंडागम पोर मेरु ५१८ पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध पाठ शुद्ध पाठ ५१२ १९ पारे ५१३ २ बुद्धिपदका बुद्धि पदका ५१३ ९ बीजपदके पार्श्व बीजपदके उभय पार्श्व १७ जब तथा सातसौ जब रोहिणी आदि पांचसौ महाविद्याएं तथा अंगुष्ठप्रसेनादि सातसौ ५१५ ११ रात्रीके रात्रिके ५१५ २२, २३, ) मेरू २४, २६ ५१६ ८ उन विद्याधरोंको ही ऐसे उन विद्याओंके धारक साधुओंको ही ५१६ १५ जलसे जलके ५१६ २४ परिणामिके पारिणामिकीके ५१७ १३ समर्थ नहीं होते समर्थ होते १३ चतुर्थ व शरीरमें षष्ठोपवासादि करते चतुर्थ व षष्ठोपवासादि करते हुए हुए साधुके साधुके शरीरमें ५१८ २२ ज्ञानोंके सामर्थ्यसे मंदरपंक्ति ज्ञानोंकी सामर्थ्यसे त्रिभुवनके व्यापारको जाननेवाले होकरके भी मन्दरपंक्ति ५१९ ३ ऋषिश्वरोंको ऋषीश्वरोंको ५१९ ११ -बंभचारीणं - बंभचारीणं ५१९ १४ ब्रम्हका ब्रह्मका ५३१ १५ मूलकरणकृति और मूलकरणकृति,तैजसशरीरमूलकरणकृति और ५३७४ २० नोआगमकर्मवेदना यहां नोआगमकर्मवेदना ५३९ १२ - वेदना - वेदणा ५४१ ३ चार चार चार वार ५४१ १० सत्तणं सत्तण्णं ५४१ २९, ३० कर्मस्थिति ज्ञानावरणीयकी उत्कृष्ट कर्मस्थितिप्रमाण स्थितिप्रमाण ५४२ १ अपज्जताभवा अपज्जत्तभवा ५४२ ४ बहुता बहुतता पृष्ठ ५३७ से लेकर पृष्ठ ५८४ के शीर्षक वाक्य असावधानीसे दाहिनी ओरके बायीं ओर, तथा बायीं ओरके दाहिनी ओर छप गये हैं । इसीप्रकार शीर्षस्थानमें दिये गये सूत्राङ्कोंमें भी उलट-फेर हो गया है। पाठक पढते समय स्वयंही यथार्थ स्थितिका अनुभव करेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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