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छक्खंडागम
पोर
मेरु
५१८
पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध पाठ
शुद्ध पाठ ५१२ १९ पारे ५१३ २ बुद्धिपदका
बुद्धि पदका ५१३ ९ बीजपदके पार्श्व
बीजपदके उभय पार्श्व १७ जब तथा सातसौ
जब रोहिणी आदि पांचसौ महाविद्याएं
तथा अंगुष्ठप्रसेनादि सातसौ ५१५ ११ रात्रीके
रात्रिके ५१५ २२, २३, ) मेरू
२४, २६ ५१६ ८ उन विद्याधरोंको ही
ऐसे उन विद्याओंके धारक साधुओंको ही ५१६ १५ जलसे
जलके ५१६ २४ परिणामिके
पारिणामिकीके ५१७ १३ समर्थ नहीं होते
समर्थ होते १३ चतुर्थ व शरीरमें षष्ठोपवासादि करते चतुर्थ व षष्ठोपवासादि करते हुए हुए साधुके
साधुके शरीरमें ५१८ २२ ज्ञानोंके सामर्थ्यसे मंदरपंक्ति ज्ञानोंकी सामर्थ्यसे त्रिभुवनके व्यापारको
जाननेवाले होकरके भी मन्दरपंक्ति ५१९ ३ ऋषिश्वरोंको
ऋषीश्वरोंको ५१९ ११ -बंभचारीणं
- बंभचारीणं ५१९ १४ ब्रम्हका
ब्रह्मका ५३१ १५ मूलकरणकृति और
मूलकरणकृति,तैजसशरीरमूलकरणकृति और ५३७४ २० नोआगमकर्मवेदना यहां नोआगमकर्मवेदना ५३९ १२ - वेदना
- वेदणा ५४१ ३ चार चार
चार वार ५४१ १० सत्तणं
सत्तण्णं ५४१ २९, ३० कर्मस्थिति ज्ञानावरणीयकी उत्कृष्ट कर्मस्थितिप्रमाण
स्थितिप्रमाण ५४२ १ अपज्जताभवा
अपज्जत्तभवा ५४२ ४ बहुता
बहुतता पृष्ठ ५३७ से लेकर पृष्ठ ५८४ के शीर्षक वाक्य असावधानीसे दाहिनी ओरके बायीं ओर, तथा बायीं ओरके दाहिनी ओर छप गये हैं । इसीप्रकार शीर्षस्थानमें दिये गये सूत्राङ्कोंमें भी उलट-फेर हो गया है। पाठक पढते समय स्वयंही यथार्थ स्थितिका अनुभव करेंगे।
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