Book Title: Shatkhandagam
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, 
Publisher: Walchand Devchand Shah Faltan

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Page 945
________________ ८२० ] पृष्ठ पंक्ति १३७ २५ १३९ २० १४४ २५ १४९ ७ १५७ - अपज्जता - परियट्ट अपज्जताणं २१ इत्थवेदेसु १५८ २६ वुंसयवेदे १६८ २३ कालानुयोगद्वार १७९ १८४ १९१ १९२ १६ १९५ १० १९९ १३ ११ १६ १ २०३ २१४ २१७ २१७ २२० २२० ५, २३० २३१ २३१ २२१ १६ २२३ ७ २८ अन्तर्मुहूर्त तीन २४ सागरोपमाणि २५ - पुंधत्ते २२३ २५ Jain Education International अशुद्ध पाठ छह ( सूत्र ३९ के अनुसार ) और अयोगि. इत्थवेदेसु अपगतयोगियों में जोवोंकी - सामगानंतरं सम्मग्मिथ्यात्व १५, १८ सद्स्थारूप ७ वादेण पंचिंदियपज्जत्तएसु ९ अनुवाद से पंचेन्द्रियपर्याप्तकों में भाओ - शुद्धिसंजदेसु चार भावोंकी छक्खंडागम २३१ २३२ ३, ५, ८, ११ चार तिर्यंचों में १७ संजदासंज्जद २४० पज्जत- तिरिक्खपंचिंदियजोणिणीसु २८ सामन्य शुद्ध पाठ छह (सूत्र ३९ की धवला टीकाके अनुसार) अपज्जत्ता - परिय - अपज्जत्ताणं इथिवेद वेद कालानुयोगद्वार अन्तर्मुहूर्त्त कमी सागरोवमाणि - पुधत्तेण और योगि.. इत्थवेदसु अपगतवेदियों में जीवोंकी - सामगाणमंतरं सम्यग्मिथ्यात्व २५ अखंसेज्जगुणा ४ सम्य मिथ्यादृष्टि १७ तिरिक्खपंचिंदिय-तिरिक्खपंचिंदिय तिरिक्ख-पंचिदियतिरिक्ख पंचिंदिय पज्जत्ततिरिक्ख-पंचिदियजोणिणीसु सदवस्थारूप - वादेण पंचिंदिय-पंचिंदियपज्जत्तएस अनुवाद से पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्तकों में भावो - सुद्धिसंजदेसु चार गुणस्थानवर्ती जीवोंके भावोंकी असंखेज्जगुणा सम्यग्मिथ्यादृष्टि सामान्य चार प्रकारके तिर्यंचों में संजदासंजद For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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