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अशुद्ध पाठ
२८
उन्हीं
उन्हीं की वर्तमान अवगाहनाकी
प्ररूपणा की जाती है ।
शुद्धि-पत्रक
उक्त द्रव्योंकी
जिन द्रव्योंके अस्तित्वादिका
उक्त द्रव्यों के
उन्हीं द्रव्योंकी
ये हैं- जो भाव कर्मों के
होता है । इस गुणस्थान में
जिसन
उक्त पांच
कहते हैं । इन छहों
होती है । इ
उसमें कपाटरूप
२६ [ अण्णाणि णाणेण ]
६-८
स्वच्छन्द हो, काम करनेमें मन्द हो, वर्तमान कार्य करनेमें विवेक रहित
शुद्ध पाठ उन्हीं जीवों के
उन्हीं जीवोंके वर्तमान क्षेत्रकी प्ररूपणा करता है ।
उक्त जीवोंकी
जिन जीवों की स्थितिका
उक्त जीवों के
उन्हीं जीवों की
ये हैं - जो भाव कर्मोंके उदयसे उत्पन्न होता है, उसे औदयिकभाव कहते हैं । जो भाव
होता है और परिणामों के निमित्तसे कदाचित् मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वको भी प्राप्त हो जाता है । इस गुणस्थान में जिसने
द्वितीयादि चार
कहते हैं । यह पर्याप्ति भाषापर्याप्तिके पश्चात् एक अन्तर्मुहूर्तमें पूर्ण होती है । इन छहों
होती है। यहां इतना विशेष ज्ञातव्य है। कि यद्यपि एक एक पर्याप्तिके पूर्ण होनेका काल अन्तर्मुहूर्त कहा है, तथापि छहों पर्याप्तियोंकी पूर्णताका समुच्चय काल भी अन्तर्मुहूर्तप्रमाण ही है । इन
उसमें दण्डसमुद्धात के समय औदारिककाययोग, कपाटरूप [ अण्णाणाणि णाणेण ] स्वच्छन्द हो, ऐसे जीव
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