Book Title: Shatkhandagam
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, 
Publisher: Walchand Devchand Shah Faltan

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Page 936
________________ वर्णव्यत्यय संस्कृत “ 4 उ = ॠ 哐哐哐哐哐有宠丌 ऋ ॠ ऋ ऋ ऋ ऋ ऐ औ ओ ऋ = 516 क क ख ग इ • ओ ५५ ए इ ग = == क- लोप क bo ⠀⠀⠀⠀ च p P ख क ख ग य == रि रि अ ॥ ॥ ॥ जो इ ए ग-लोप उ = = ह य घ = = ह च-लोप ओ ओ लौकिक य ज च = य ज-लोप ज = य ट पुरुष पुद्गल ऋद्धि ऋजुमति ऋषेः Jain Education International सदृशः मृदुनाम मृग मृषावाद मृषा माहेन्द्र शैल औदारिक लौकिक कर्कश कुब्ज लोकाः तीर्थकर अन्तकृत नगर प्रयोग सुख, द्रोणमुख भगवान् मेघानाम् अप्रचुरः अन्यगत प्राकृत शब्दोंका स्वरूपभेद रुचके प्रचला मनुज भाजन ड कूट स्वरव्यत्यय प्राकृत पुरिस पोग्गल हड्डि उजु मदि रिसिस्स सरिसो मउवणामं मिय मुसाबाद मोस माहिंद सेल खुज्ज लोगा तित्थयर अंतयड सुह, दोणामुमुह भयवं ओरालिय लोइय स्वरोंके मध्यगत असंयुक्त व्यंजनका व्यत्यय लोइय कक्खड णयर पभोअ मेहाणं अपउरा रुजगम्मि पयला मणुअ भायण कूड सूत्र For Private & Personal Use Only १,१,१०१ ५.५,९८ ५,५, ७७ ४,१,४४ १,९-१, ४० ४.२-८, ३ १, १,५२ ५.५.७० ४,१.५२ १.१.५६ ५.५.५१ ५.५.५१ १,१.१,४० १.९-१,३४ १,२,४ १,९-९, २१६ ५,५,७९ ५.५,९८ ५,५,७९ ५,६,२३ ५,६,३७ ५,६,१२७ ५.५.६४ १,९-१,१६ ५,५,६४ ५.५.१८ ५,३,३० त्रि. प्रा. शब्दानु. १।२।५९ १।२।६५ १।२।७५ १२१८० १।२।९१ ११२९० १४२/७३ ११२।७५ ११२१८५ ११२४८५ १।२।४० १।२।१०१ १।२।१०१ १।२।१०१ ११३१८ १।३।१०५ १।३।१२ १।३।१४ १०३।१० १।२४४० १।३।२० १1३|१० ११३८ १।३।२० १२३४८ ११३८ १।३।३१ www.jainelibrary.org

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