Book Title: Shatkhandagam
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, 
Publisher: Walchand Devchand Shah Faltan

Previous | Next

Page 915
________________ ७९० ] छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं [५, ६, ७३४ ____ अग्रहणद्रव्यवर्गणा किसे कहते हैं ? ।। ७३२ ॥ अग्रहणद्रव्यवर्गणा आहारद्रव्य पर अधिष्ठित होकर जब तक तैजसद्रव्यवर्गणाको नहीं प्राप्त होती है तब तक इन दोनों द्रव्योंके मध्यमें जो होती है उसका नाम अग्रहणद्रव्यवर्गणा है ।। ७३३ ॥ ___अगहणदव्ववग्गणाणमुवरि तेयादव्यवग्गणा णाम ।। ७३४ ॥ तेयादव्यवग्गणा णाम का ? ॥ ७३५ ॥ तेयादव्ववग्गणा तेयासरीरस्स गहणं पवत्तदि ॥ ७३६ ॥ जाणि दव्वाणि घेत्तूण तेयासरीरत्ताए परिणामेदूण परिणमति जीवा ताणि दव्याणि तेजादव्यवग्गणा णाम ॥ ७३७ ॥ ____ अग्रहणद्रव्यवर्गणाओंके ऊपर तैजसद्व्यवर्गणा होती है । ७३४ ॥ तैजसद्रव्यवर्गणा किसे कहते है ? ।। ७३५ ॥ जिस वर्गणासे तैजसशरीरके ग्रहणमें प्रवृत्त होता है उसे तैजस द्रव्यवर्गणा कहते हैं ।। ७३६ ॥ जिन द्रव्योंको ग्रहणकर वे उन्हें तैजसशरीररूपसे परिणमाकर जीव परिणमन करते हैं उन द्रव्योंकी तैजसद्रव्यवर्गणा संज्ञा है ॥ ७३७ ।। तेयादव्ववग्गणाणमुवरिमगहणदव्यवग्गणा णाम ॥ ७३८ ॥ तैजसद्व्यवर्गणाओंके ऊपर अग्रहणद्रव्यवर्गणा होती है ॥ ७३८ ॥ अगहणदव्यवग्गणा णाम का ॥ ७३९ ॥ अगहणदव्ववग्गणा तेयादव्वमविच्छिदा भासादव्वं ण पावेदि ताणं दवाणमंतरे अगहणदव्यवग्गणा णाम ॥ ७४० ॥ अग्रहणद्रव्य किसे कहते हैं ? ॥ ७३९ ॥ अग्रहणद्रव्यवर्गणा तैजसवर्गणापर स्थित होकर जब तक भाषाद्रव्यवर्गणाको नहीं प्राप्त होती तब तक उन द्रव्योंके मध्यमें जो वर्गणा होती है उसका नाम अग्रहण द्रव्यवर्गणा है ॥ ७४० ॥ अगहणदव्ववग्गणाणमुवरि भासादव्यवग्गणा णाम ॥ ७४१ ॥ अग्रहणद्रव्यवर्गणाओंके ऊपर भाषा द्रव्यवर्गणा होती है ।। ७४१ ॥ भासादव्ववग्गणा णाम का? ॥ ७४२ ॥ भासादव्ववग्गणा चउविहाए भासाए गहणं पवत्तदि ॥७४३॥ सच्चभासाए मोसमासाए सच्चमोसमासाए असच्चमोसमासाए जाणि दव्याणि घेत्तूण सच्चभासत्ताए मोसमासत्ताए सच्चमोसमासत्ताए असच्चमोसभासत्ताए परिणामेदण णिस्सारंति जीवा ताणि भासादब्ववग्गणा णाम ॥ ७४४ ॥ भाषा द्रव्यवर्गणा किसे कहते हैं ? ।। ७४२ ॥ जो वर्गणा चार प्रकारकी भाषाका ग्रहण होकर प्रवृत्त होती है उसे भाषा द्रव्यवर्गणा कहते हैं ।। ७४३ ॥ सत्यभाषा, मृषाभाषा, सत्यमृषाभाषा और असत्यमृषाभाषाके जिन द्रव्योंको ग्रहण कर और उन्हें सत्यभाषा, मोषभाषा, सत्यमोषभाषा और असत्यमोषभाषारूपसे परिणमाकर जीव उन्हें निकालते हैं उन द्रव्योंकी भाषावर्गणा संज्ञा हैं ॥ ७४४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 913 914 915 916 917 918 919 920 921 922 923 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933 934 935 936 937 938 939 940 941 942 943 944 945 946 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966