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५, ४, ४२७ ]
बंधणाणियोगद्दारे सरीरपरूवणाए पदमीमांसा
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पदमीमांसाए तत्थ इमाणि दुवे अणियोगद्दाराणि- जहण्णपदे उक्कस्सपदे ॥
अब पदमीमांसा प्रकरण प्राप्त है। उसमें ये दो अनुयोगद्वार हैं- जघन्यपदविषयक मीमांसा और उत्कृष्टपदविषयक मीमांसा ॥ ४१६ ॥
उक्कस्सपदेण ओरालियसरीरस्स उक्कस्सयं पदेसग्गं कस्स ? ॥४१७ ॥ अण्णदरस्स उत्तरकुरू-देवकुरू मणुअस्स तिपलिदोवमट्टिदियस्स ॥ ४१८ ॥
उत्कृष्ट पदकी अपेक्षा औदारिकशरीरके उत्कृष्ट प्रदेशाग्र किसके होता है ? ॥ ४१७ ॥ जो तीन पल्यकी आयुवाला उत्तरकुरू और देवकुरूका अन्यतर मनुष्य है उसके औदारिकशरीरका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र होता है || ४१८ ॥
आगे १० सूत्रोंमें उक्त मनुष्यकी ही विशेषताको प्रगट करते हैंतेणेव पढमसमयआहारएण पढमसमयतब्भवत्थेण उक्कस्सेण जोगेण आहारिदो॥
उक्त मनुष्य प्रथम समयवर्ती आहारक होकर- ऋजुगतिसे उत्पन्न होकर- तद्भवस्थ होनेके प्रथम समयमें उत्कृष्ट योगके द्वारा आहारको ग्रहण किया करता है ॥ ४१९ ॥
उक्कसियाए पड्ढिए बड्ढिदो ॥ ४२० ॥ अंतोमुहुत्तेण सव्वलहुँ सव्वाहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदो ॥ ४२१ ॥
वह उत्कृष्ट एकान्तानुवृद्धिसे उत्तरोत्तर वृद्धिंगत होता है ॥ ४२० ॥ तथा वह सबसे जघन्य अन्तर्मुहूर्त काल द्वारा सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त होता है ॥ ४२१ ॥
तस्स अप्पाओ भासद्धाओ॥ ४२२ ॥ अप्पाओ मणजोगद्धाओ ॥ ४२३ ॥ अप्पा छविच्छेदा ॥ ४२४ ॥
उसका भाषणकाल अल्प होता है ॥ ४२२ ॥ चिन्तनकाल अल्प होता है ।। ४२३ ॥ उससे छविछेद शरीरको पीडा पहुंचानेवाले क्रियाविशेष- अल्प होते हैं ॥ ४२४ ॥
अंतरेण कदाइ विउविदो ॥ ४२५ ॥
वह तीन पल्य प्रमाण आयुकालके मध्यमें कदाचित् भी विक्रियाको नहीं किया करता है ।। ४२५॥
थोवावसेसे जीविदव्वए ति जोगजनमज्झस्स उवरिमंतोमुहुत्तद्धमच्छिदो ॥४२६॥
जीवितकालके स्तोक शेष रहजानेपर वह योगयवमध्यके ऊपर अन्तर्मुहूर्त काल तक रहा करता है ॥ ४२६ ॥
चरिमे जीवगुणहाणिहाणंतरे आवलियाए असंखेज्जदिभागमच्छिदो ॥ ४२७ ॥
___ वह अन्तिम जीवगुणहानिस्थानान्तरोंमें आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण काल तक रहता है ॥ ४२७॥
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