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७६४] छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं
[५, ४, ४०७ गुणगारे त्ति तत्थ इमाणि तिण्णि अणियोगद्दाराणि- जहण्णपदे उक्कस्सपदे जहण्णुक्कस्सपदे ॥ ४०७॥
अब गुणकारका प्रकरण प्राप्त है। उसमें ये तीन अनुयोगद्वार है- जघन्यद्रव्यविषयक गुणकारक अल्पबहुत्व, उत्कृष्ट द्रव्यविषयक गुणकारक अल्पबहुत्व और जघन्य-उत्कृष्ट द्रव्यविषयक गुणकारक अल्पबहुत्व ॥ ४०७ ॥
____ जहण्णपदे सव्वत्थोवा ओरालिय-चेउब्धिय-आहारसरीरस्स जहण्णओ गुणगारो सेडीए असंखेज्जदिभागो ॥ ४०८ ॥
___ जघन्यपदविषयक अल्पबहुत्वकी प्ररूपणामें औदारिकशरीरकी जघन्य प्रदेशाग्र सबसे स्तोक है । उससे वैक्रियिक शरीरका जघन्य प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है, जिसका गुणकार जगश्रेणिका असंख्यातवां भाग है। उससे आहारकशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है और उसका गुणकार जगश्रेणिका असंख्यातवां भाग है ॥ ४०८ ॥
तेजा-कम्मइयसरीरस्स जहण्णओ गुणगारो अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो सिद्धाणमणंतभागो ॥ ४०९॥
तैजसशरीर और कार्मणशरीरके जघन्य प्रदेशाप्रविषयक गुणकारका प्रमाण अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भाग हैं ॥ ४०९ ॥
। उक्कस्सपदेण ओरालियसरीरस्स उक्कस्सओ गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो॥ ४१०॥
. उत्कृष्ट पदकी अपेक्षा औदारिकशरीरका उत्कृष्ट गुणाकार पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण है ॥ ४१० ॥
एवं चदुण्णं सरीराणं ॥४११ ॥ इसी प्रकार शेष चार शरीरोंके प्रकृत अल्पबहुत्वको जानना चाहिये ॥ ४११ ॥
जहण्णुक्कस्सपदेण ओरालिय-वेउब्विय-आहारसरीरस्स जहण्णओ गुणगारो सेडीए असंखेज्जदिभागो ॥४१२॥ उक्कस्सओ गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ॥४१३॥ तेजा-कम्मइयसरीरस्स जहण्णओ गुणगारो अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो ॥ ४१४॥ तस्सेव उक्कस्सओ गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो॥ ४१५ ॥
जघन्य-उत्कृष्ट पदकी अपेक्षा औदारिकशरीर, वौक्रियिकशरीर और आहारकशरीरका जघन्य गुणकार जगश्रेणिके असंख्यातवें भाग प्रमाण है ॥ ४१२ ॥ उन्हींका उत्कृष्ट गुणकार पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है ॥ ४१३ ॥ तैजसशरीर और कार्मणशरीरका जघन्य गुणकार अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भाग प्रमाण है ॥ ४१४ ॥ उससे उन्हींका उत्कृष्ट गुणकार पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है ॥ ४१५ ॥
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