Book Title: Shatkhandagam
Author(s): Pushpadant, Bhutbali,
Publisher: Walchand Devchand Shah Faltan
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७७६ ] छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं
[ ५, ४, ५४९ तस्सेव जहण्णयमुक्कस्सपदे उक्कस्सओ विस्सासुवचओ अणंतगुणो ॥ ५४९ ॥ उससे उसी जघन्य वैक्रियिकका उत्कृष्ट पदमें उत्कृष्ट विस्रसोपचय अनन्तगुणा है ॥ तस्सेव उक्कस्सय जहण्णपदे जहण्णओ विस्सासुवचओ अणंतगुणो ॥ ५५० ॥ उससे उसीके उत्कृष्टका जघन्य पदमें जघन्य विस्रसोपचय अनन्तगुणा है ॥ ५५० ॥ तस्सेव उक्कस्सयस्स उक्कस्सपदे उवकस्सओ विस्सासुवचओ अणंतगुणो ॥५५१॥ उससे उसीके उत्कृष्टका उत्कृष्ट पदमें उत्कृष्ट विस्रसोपचय अनन्तगुणा है ॥ ५५१ ॥
बादरणिगोदवग्गणाए जहणियाए चरिमसमयछदुमत्थस्स सव्वजहणियाए सरीरोगाहणाए वट्टमाणस्स जहण्णओ विस्सासुवचओ थोवो ॥ ५५२ ॥
___ शरीरकी सबसे जघन्य अवगाहनामें विद्यमान अन्तिम समयवर्ती छद्मस्थकी जघन्य विस्रसोपचय स्तोक है ॥ ५५२ ।।
सुहुमणिगोदवग्गणाए उक्कस्सियाए छण्णं जीवणिकायाणं एयबंधणबद्धाणं सपिडिंदाणं संताणं सव्वुक्कस्सियाए सरीरोगाहणाए वट्टमाणस्स उक्कस्सओ विस्सासुवचओ अणंतगुणो ॥ ५५३ ॥
एक बन्धनबद्ध होकर पिण्ड अवस्थाको प्राप्त हुए छह जीवनिकायोंकी सर्वोत्कृष्ट शरीरअवगाहनामें विद्यमान जीवकी उत्कृष्ट सूक्ष्म निगोदवर्गणाका उत्कृष्ट विस्रसोपचय उससे अनन्तगुणा है ॥ ५५३ ॥
एदेसिं चैव परूवणद्वदाए तत्थ इमाणि तिणि अणियोगद्दाराणि- जीवपमाणाणुगमो पदेसमाणाणुगमो अप्पाबहुए ति ॥ ५५४ ॥
इन्हींकी प्ररूपणामें प्रयोजनीभूत वहां ये तीन अनुयोगद्वार होते है- जीवप्रमाणानुगम प्रदेशप्रमाणानुगम और अल्पबहुत्त्व ॥ ५५४ ॥
जीवपमाणाणुगमेण पुढविकाइया जीवा असंखेज्जा ॥ ५५५ ॥ आउक्काइया जीवा असंखेज्जा ॥ ५५६ ॥ तेउक्काइया जीवा असंखेज्जा ॥ ५५७ ।। वाउक्काइया जीवा असंखेज्जा ॥५५८ ॥ वणप्फदिकाइया जीवा अणंता ॥ ५५९ ॥ तसकाइया जीवा असंखेज्जा ॥ ५६० ॥
जीवप्रमाणानुगमकी अपेक्षा पृथिवीकायिक जीव असंख्यात हैं ।। ५५५ ॥ उनसे जलकायिक जीव असंख्यात हैं ॥ ५५६ ॥ उनसे अग्निकायिक जीव असंख्यात हैं ॥ ५५७ ॥ उनसे वायुकायिक जीव असंख्यात हैं ।। ५५८ ॥ उनसे वनस्पतिकायिक जीव अनन्त हैं ॥ ५५९ ॥ उनसे त्रसकायिक जीव असंख्यात हैं ॥ ५६० ॥
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