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५, ५, ६३८ ] बंधणाणियोगद्दारे चूलिया
[७८१ जो णिगोदो जहण्णएण वक्कमणकालेण वक्कमंतो जहण्णएण पबंधणकालेण पबद्धो तेसिं बादरणिगोदाणं तथा पबद्धाणं मरणकमेण णिग्गमो होदि ॥ ६३० ॥
जो निगोद जघन्य उत्पत्ति कालके द्वारा उत्पन्न होकर जघन्य प्रबन्धनकालके द्वारा बन्धको प्राप्त हुए हैं उन बादर निगोदोंका उस प्रकारसे बद्ध होनेपर मरणके क्रमके अनुसार निर्गमन होता है ॥ ६३० ।।
सव्वुक्कस्सियाए गुणसेडीए मरणेण मदाणं सवचिरेण कालेण णिल्लेविज्जमाणाणं तेसिं चरिमसमए मदावसिट्ठाणं आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तो णिगोदाणं ॥ ६३१ ॥
सर्वोत्कृष्ट गुणश्रेणि द्वारा मरणसे मरे हुए तथा सबसे दीर्घ काल द्वारा निर्लेपनको प्राप्त होनेवाले उन जीवोंके अन्तिम समयमें मृत होनेसे बचे हुऐ निगोदोंका प्रमाण आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण है ॥ ६३१ ॥
एत्थ अप्पाबहुअं- सव्वत्थोवं खुद्दा भवग्गहणं ॥ ६३२ ॥ यहां अल्पबहुत्त्व- क्षुल्लकभवग्रहण सबसे स्तोक है ॥ ६३२ ॥
एइंदियस्स जहण्णिया णिवत्ती संखेज्जगुणा ॥ ६३३ ॥ सा चेव उक्कस्सिया विसेसाहिया ॥ ६३४ ॥
एकेन्द्रियकी जघन्य निर्वृत्ति संख्यातगुणी है ॥ ६३३ ॥ वही उत्कृष्ट निवृत्ति अपने जघन्यसे विशेष अधिक है ॥ ६३४ ॥
बादरणिगोदवग्गणाए जहणियाए आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तो णिगोदाणं ॥
क्षीणकषायके अन्तिम समयमें होनेवाली जघन्य बादर निगोदवर्गणामें निगोदोंका प्रमाण आवलिके असंख्यातवें भाग मात्र होता है ॥ ६३५ ॥
सुहुमणिगोदवग्गणाए जहणियाए आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तो णिगोदाणं॥
जघन्य सूक्ष्म निगोदवर्गणामें निगोदोंका प्रमाण आवलिके असंख्यातवें भाग मात्र होता है ॥ ६३६ ॥
__ सुहुमणिगोदवग्गणाए उक्कस्सियाए आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तो णिगोदाणं ॥ ६३७॥
उत्कृष्ट सूक्ष्म निगोदवर्गणामें निगोदोंका प्रमाण आवलिके असंख्यातवें भाग मात्र होता है ॥ ६३७ ॥
बादरणिगोदवग्गणाए उक्कस्सियाए सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्तो णिगोदाणं ॥
उत्कृष्ट बादर निगोदवर्गणामें निगोदोंका प्रमाण जगश्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र होता है ॥ ६३८ ॥
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