Book Title: Shatkhandagam
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, 
Publisher: Walchand Devchand Shah Faltan

Previous | Next

Page 911
________________ छक्खंडागमे वग्गणा - खंड [ ५, ६, ६८५ तत्पश्चात् यवमध्य जाकर बादर निगोद पर्याप्त जीवोंके निर्वृत्तिस्थान आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण होते हैं ॥ ६८४ ॥ तदो अंतमुत्तं गंतूण सुहुमणिगोदजीवपज्जत्तयाणमाउअबंधजवमज्झं ॥ ६८५ ॥ तत्पश्चात् अन्तर्मुहूर्त जाकर सूक्ष्म निगोद पर्याप्त जीवोंका आयुबन्धयवमध्य होता है ॥ तदो अंतमुत्तं गंतूण बादर णिगोदजीवपज्जत्तयाणं आउअबंधजवमज्झं ||६८६॥ तत्पश्चात् अन्तर्मुहूर्त जाकर बादर निगोद पर्याप्त जीवोंका आयुबन्धयवमध्य होता है ॥ दो अंतोतंतू सुहुमणिगोदजीवपज्जत्तयाणं मरणजवमज्झं ।। ६८७ ॥ तत्पश्चात् अन्तर्मुहूर्त जाकर सूक्ष्म निगोद पर्याप्त जीवोंका मरणयत्रमध्य होता है | तो अंतमुत्तं गतूण बादरणिगोदजीवपज्जत्तयाणं मरणजवमज्झं ।। ६८८ ॥ तत्पश्चात् अन्तर्मुहूर्त जाकर बादर निगोद पर्याप्त जीवोंका मरणयवमध्य होता है ॥ तदो अंतोतंतूण सुहमणिगोदपज्जत्तयाणं पिल्लवणडाणाणि आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्ताणि ।। ६८९ ।। ७८६ ] तत्पश्चात् अन्तर्मुहूर्त जाकर सूक्ष्म निगोद पर्याप्त जीवोंके निर्लेपनस्थान आवल असंख्यातवें भाग प्रमाण होते हैं ।। ६८९ ॥ तदो अंतोमुत्तं गंतून बादरणिगोदजीवपज्जत्तयाणं णिल्लेवणडाणाणि आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्ताणि ।। ६९० ।। तत्पश्चात् अन्तर्मुहूर्त जाकर बादर निगोद पर्याप्त जीवोंके निर्लेपनस्थान आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण होते हैं ।। ६९० ॥ तम्हि चैव पत्तेयसरीरपज्जत्तयाणं णिल्लेवणद्वाणाणि आवलियाए असंखेज्जदिभागमेताणि ।। ६९१ ॥ वहीं पर प्रत्येकशरीर पर्याप्तकोंके निर्लेपनस्थान आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण होते हैं ।॥ एत्थ अप्पाबहुगं - सव्वत्थोवाणि सुहुमणिगोदजीवपज्जत्तयाणं णिल्लेवणडाणाणि ॥ यहां अल्पबहुत्त्व - सूक्ष्म निगोद पर्याप्त जीवोंके निर्लेपनस्थान सबसे स्तोक हैं ||६९२॥ बादरणिगोदजीव पज्जत्तयाणं पिल्लेवणट्टाणाणि विसेसाहियाणि ।। ६९३॥ बादर निगोद पर्याप्त जीवोंके निर्लेपनस्थान विशेष अधिक हैं । ६९३ ॥ तम्हि चैव पत्तेयसरीरपज्जत्तयाणं णिल्लेवणडाणाणि विसेसाहियाणि ।। ६९४ ॥ aniपर प्रत्येकशरीर पर्याप्त जीवोंके निर्लेपनस्थान विशेष अधिक हैं ॥ ६९४ ॥ तत्थ इमाणि पढमदाए आवासयाणि हवंति ।। ६९५ ।। वहां सर्वप्रथम ये आवश्यक होते हैं ।। ६९५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 909 910 911 912 913 914 915 916 917 918 919 920 921 922 923 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933 934 935 936 937 938 939 940 941 942 943 944 945 946 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966