Book Title: Shatkhandagam
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, 
Publisher: Walchand Devchand Shah Faltan

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Page 910
________________ ५, ६, ६८४ ] बंधणाणियोगद्दारे चूलिया ७८५ यहां अल्पबहुत्त्व- औदारिकशरीरके इन्द्रियनिवृत्तिस्थान सबसे स्तोक हैं ॥ ६६९॥ वैक्रियिकशरीरके इन्द्रियनिर्वृत्तिस्थान विशेष अधिक हैं ॥ ६७० ॥ आहारकशरीरके इन्द्रियनिर्वृत्तिस्थान बिशेष अधिक हैं ॥ ६७१ ॥ तत्पश्चात् अन्तर्मुहूर्त जाकर तीन शरीरोंके आनपान, भाषा और मन निर्वृत्तिस्थान आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण होते है ॥ ६७२ ॥ ये निर्वृत्तिस्थान औदारिकशरीर, वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीरके क्रमसे उत्तरोत्तर विशेष अधिक हैं ॥ ६७३ ॥ __ एत्थ अप्पाबहुअं- सव्वत्थोवाणि ओरालियसरीरस्स आणापाण-भासा-मणणिव्वत्तिट्ठाणाणि ॥६७४॥ वेउब्वियसरीरस्स आणापाण-भासा-मणणिव्यत्तिट्ठाणाणि विसेसाहियाणि ॥ ६७५ ॥ आहारसरीरस्स आणापाण-भासा-मणणिव्वत्तिट्ठाणाणि विसेसाहियाणि ॥६७६॥ तदो अंतोमुहुत्तं गंतूण तिण्णं सरीराणं णिल्लेवणट्ठाणाणि आवलियाए असंखेज्जदिमागमेत्ताणि ॥६७७॥ ओरालिय-उबिय-आहारसरीराणं जहाकम्मेण विसेसाहियाणि ॥ ६७८ ॥ __ यहां अल्पबहुत्त्व-- औदारिकशरीरके आनपान, भाषा और मन निर्वृत्तिस्थान सबसे स्तोक हैं ॥६७४ ॥ वैक्रियिकशरीरके आनपान, भाषा और मन निवृत्तिस्थान विशेष अधिक हैं ॥ ६७५॥ आहारशरीरके आनपान, भाषा और मन निवृत्तिस्थान विशेष अधिक हैं ॥ ६७६ ॥ तत्पश्चात् अन्तर्मुहूर्त जाकर तीन शरीरोंके निर्लेपनस्थान आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं ॥ ६७७ ॥ वे निर्लेपनस्थान औदारिकशरीर वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीरके क्रमसे उत्तरोत्तर विशेष अधिक हैं ॥ ६७८ ॥ एत्थ अप्पाबहुगं-सव्वत्थोवाणि ओरालियसरीरस्स णिल्लेवणट्ठाणाणि ॥६७९॥ वेउव्वियसरीरस्स णिल्लेवणट्ठाणाणि विसेसाहियाणि ॥ ६८० ॥ आहारसरीरस्स णिल्लेवणहाणाणि विसेसाहियाणि ॥ ६८१ ॥ यहां अल्पबहुत्त्व- औदारिकशरीरके निर्लेपनस्थान सबसे स्तोक हैं ॥ ६७९ ॥ वैक्रियिक शरीरके निर्लेपनस्थान विशेष अधिक हैं ॥६८०॥ आहारकशरीरके निर्लेपनस्थान विशेष अधिक हैं। तत्थ इमाणि पढमदाए आवासयाणि होति ॥ ६८२ ॥ वहां सर्वप्रथम बादर और सूक्ष्म निगोद जीवोंके ये आवश्यक होते हैं । ॥ ६८२ ।। तदो जवमझं गंतूण सुहमणिगोदजीवपज्जत्तयाणं णिव्वत्तिट्ठाणाणि आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्ताणि ॥ ६८३ ॥ तत्पश्चात् यवमध्य जाकर सूक्ष्म निगोद पर्याप्त जीवोंके निर्वृत्तिस्थान आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण होते हैं ॥ ६८३ ॥ तदो जवमझं गंतूण बादरणिगोदजीवपज्जत्तयाणं णिव्वत्तिट्ठाणाणि आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्ताणि ॥ ६८४ ॥ छ. ९९ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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