Book Title: Shatkhandagam
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, 
Publisher: Walchand Devchand Shah Faltan

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Page 909
________________ ७८४ ] छक्खंडागमे वग्गणा - खंड [ ५, ६, ६५९ तदो अंतोमुहुत्तं गंतूण बादरणिगोदजीव अप्पज्जत्तयाणं ण्णिव्वत्तिट्ठाणाणि आलिया असंखेज्जदिभागमेत्ताणि ।। ६५९ ।। तत्पश्चात् अन्तर्मुहूर्त जाकर बादर निगोद अपर्याप्त जीवोंके आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण निर्वृत्तिस्थान होते हैं ।। ६५९ ॥ दो अंतमुत्तं गंतूण सव्वजीवाणं णिव्वत्तीए अंतरं ।। ६६० ।। तत्पश्चात् अन्तर्मुहूर्त जाकर सब जीवोंकी निर्वृत्तिका अन्तर होता है || ६६० ॥ तत्थ इमाणि पटमदाए आवासयाणि भवति ।। ६६१ ।। वहां सर्व प्रथम ये आवश्यक होते हैं ।। ६६१ ॥ दो अंतमुत्तं गंतूण तिष्णं सरीराणं णिव्वत्तिट्ठाणाणि आवलियाए असंखेज्ज - दिभागमेत्ताणि ।। ६६२ ।। तत्पश्चात् अन्तर्मुहूर्त जाकर तीन शरीरोंके आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण निर्वृत्तिस्थान होते हैं ।। ६६२ ॥ ओरालिय वेडव्त्रिय आहारसरीराणं जहाकमं विसेसाहियाणि ।। ६६३ ॥ पूर्वोक्त वे औदारिकशरीर वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीरके निर्वृत्तिस्थान यथा क्रमसे उत्तरोत्तर विशेष अधिक होते हैं || ६६३ ॥ एत्थ अप्पा बहुअं - सव्वत्थोवाणि ओरालियसरीरस्स णिव्वत्ति द्वाणाणि ॥६६४ ॥ वउव्वियसरीरस्स णिव्वत्तिट्ठाणाणि विसेसाहियाणि ।। ६६५ ।। आहारसरीरस्स णिव्वत्तिद्वाणाणि विसेसाहियाणि ।। ६६६ ।। तदो अंतोमुहुत्तं गंतूण तिष्णं सरीराणमिदियणिव्यत्तिद्वाणाणि आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्ताणि ॥ ६६७ ॥ ओरालिय-वेउब्विय- आहारसरीराणं जहाकमं विसेसाहियाणि ।। ६६८ ॥ वहां अल्पबहुत्त्व इस प्रकार है- औदारिकशरीर के निर्वृत्तिस्थान सबसे स्तोक होते है || ६६४ ॥ वैक्रियिकशरीरंके निर्वृत्तिस्थान विशेष अधिक हैं ।। ६६५ || आहारशरीरके निर्वृत्तिस्थान विशेष अधिक हैं ॥ ६६६ ॥ तत्पश्चात् अन्तर्मुहूर्त जाकर तीन शरीरोंके इन्द्रियनिवृत्तिस्थान आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण होते है ॥ ६६७ ॥ ये इन्द्रियनिर्वृत्तिस्थान औदारिकशरीर, वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीरके क्रमसे उत्तरोत्तर विशेष अधिक होते हैं ।। ६६८ ॥ एत्थं अप्पाबहुअं- सव्वत्थोवाणि ओरालियसरीरस्स इंदियणिव्यत्तिट्ठाणाणि ।। ६६९ || वेउव्वियसरीरस्स- इंदिय णिव्वत्तिट्ठाणाणि विसेसाहियाणि ।। ६७० ।। आहारसरीरस्स इंदियणिव्यत्तिट्ठाणाणि विसेसाहियाणि ।। ६७१ ।। तदो अंतोमुहुत्तं गंतूण तिष्णं सरीराणं आणापाण - भासा - मणणिव्वत्तिट्ठाणाणि आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्ताणि ।। ६७२ ।। ओरालिय- वेडब्बिय आहारसरीराणं जहाकमं विसेसाहियाणि ।। ६७३ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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