Book Title: Shatkhandagam
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, 
Publisher: Walchand Devchand Shah Faltan

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Page 905
________________ ७८० ] छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं [५, ५, ६१५ उपक्रमणअन्तर असंख्यातगुणा है ॥ ६०८ ॥ अग्रक्रमणकालविशेष असंख्यातगुणा है ॥ ६०९॥ प्रबन्धनकालविशेष विशेष अधिक है ॥ ६१० ॥ जघन्य पदकी अपेक्षा जघन्य अपक्रमणकाल असंख्यातगुणा है ॥६११॥ जघन्य पदकी अपेक्षा जघन्य प्रबन्धनकाल विशेष अधिक है ॥६१२॥ उत्कृष्ट पदकी अपेक्षा उत्कृष्ट अपक्रमणकाल विशेष अधिक है ॥ ६१३ ॥ उत्कृष्ट पदकी अपेक्षा उत्कृष्ट प्रबन्धनकाल विशेष अधिक है ॥ ६१४ ॥ ॥ एवं काल अप्पाबहुअं ॥ जीव अप्पाबहुए त्ति ॥ ६१५ ॥ अब जीव अल्पबहुत्त्वका प्रकरण है ॥ ६१५ ॥ सव्वत्थोवा चरिमसमए वक्कमति जीवा ॥ ६१६ ॥ अपढम-अचरिमसमयएसु वक्कमति जीवा असंखेज्जगुणा ॥ ६१७ ॥ अपढमसमए वक्कमंति जीवा विसेसाहिया ॥ ६१८ ॥ पढमसमए वक्कमति जीवा असंखेज्जगुणा ॥६१९ ॥ अचरिमसमएसु वक्कमंति जीवा विसेसाहिया ॥ ६२० ॥ सव्वेसु समएसु वक्कमंति जीवा विसेसाहिया ।। ६२१ ॥ सव्वत्थोवा चरिमसमए वक्कमति जीवा ।। ६२२ ॥ अपढम-अचरिमसमएसु वक्कमंति जीवा असंखेज्जगुणा ॥ ६२३ ॥ अपढमसमए वक्कमति जीवा विसेसाहिया ॥ ६२४ ॥ पढमसमए वक्कमति जीवा असंखेज्जगुणा ॥ ६२५ ॥ अचरिमसमएसु वक्कमंति जीवा विसेसाहिया ॥ ६२६ ॥ सव्वेसु समएसु वक्कमिदजीवा विसेसाहिया ॥ ६२७ ॥ _अन्तिम समयमें उत्पन्न होनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं ॥ ६१६ ॥ अप्रथम-अचरम समयोंमें उत्पन्न होनेवाले जीव असंख्यातगुणे हैं ।। ६१७ ॥ अप्रथम समयमें उत्पन्न होनेवाले जीत्र विशेष अधिक हैं ॥ ६१८ ॥ प्रथम समयमें उत्पन्न होनेवाले जीव असंख्यातगुणे हैं ॥ ६१९ ॥ अचरम समयोंमें उत्पन्न होनेवाले जीव विशेष अधिक हैं ॥ ६२० ॥ सब समयोमें उत्पन्न होनेवाले जीव विशेष अधिक हैं ॥६२१॥ अन्तिम समयमें उत्पन्न होनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं ॥ ६२२ ॥ अप्रथम-अचरम समयोंमें उत्पन्न होनेवाले जीव असंख्यातगुणे हैं ॥ ६२३ ॥ अप्रथम समयमें उत्पन्न होनेवाले जीव विशेष अधिक हैं ॥ ६२४ ॥ प्रथम समयमें उत्पन्न होनेवाले जीव असंख्यातगुणे हैं ॥ ६२५ ॥ अचरम समयमें उत्पन्न होनेवाले जीव विशेष अधिक है ।। ६२६ ॥ सब समयोंमें उत्पन्न हुए जीव विशेष अधिक हैं ॥ ६२७ ॥ ॥ जीव-अल्पबहुत्व समाप्त हुआ । सव्वो बादरणिगोदो पज्जत्तो वा वामिस्सो वा ॥ ६२८ ॥ स्कन्ध, अण्डर, आवास और पुलविमें अवस्थित सब बादर निगोद पर्याप्त और मिश्र (पर्याप्त-अपर्याप्त ) होते है ॥ ६२८ ॥ सुहुमणिगोदवग्गणाए पुण णियमा वामिस्सो ॥ ६२९ ॥ परन्तु सूक्ष्मनिगोदवर्गणामें नियमसे मिश्र ही होते है ॥ ६२९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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