Book Title: Shatkhandagam
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, 
Publisher: Walchand Devchand Shah Faltan

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Page 903
________________ ७७८ ] छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं [ ५, ५, ५८१ इससे आगेका ग्रन्थ चूलिका है ॥ ५८० ॥ जो णिगोदो पढमदाए वक्कममाणो अणंता वक्कमंति जीवा । एयसमएण अणंताणंतसाहारणजीवेण घेत्तूण एगसरीरं भवदि असंखेज्जलोगमेत्तसरीराणि घेत्तूण एगो णिगोदो होदि ॥ ५८१ ॥ प्रथम समयमें जो निगोद उत्पन्न होता है उसके साथ अनन्त जीव उत्पन्न होते हैं। यहां एक समयमें अनन्तानन्त साधारण जीवोंको ग्रहण कर एकशरीर होता है। तथा असंख्यात लोक प्रमाण शरीरोंको ग्रहण कर एक निगोद (पुलवी) होता है ॥ ५८१ ॥ विदियसमए असंखेज्जगुणहीणा वक्कमंति ॥५८२ ॥ तदियसमए असंखेज्जगुणहीणा वक्कमंति ॥ ५८३ ॥ एवं जाव असंखेज्जगुणहीणाए सेडीए णिरंतरं वकमंति जाव उक्कस्सेण आवलियाए असंखेज्जदिभागो ।। ५८४ ॥ दूसरे समयमें असंख्यातगुणे हीन निगोद जीव उत्पन्न होते हैं ॥ ५८२ ॥ तीसरे समयमें असंख्यातगुणे हीन निगोद जीव उत्पन्न होते हैं ॥ ५८३ ॥ इस प्रकार उत्कर्षसे आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण काल तक असंख्यातगुणी हीन श्रेणि क्रमसे निगोद जीव निरन्तर उत्पन्न होते हैं । ५८४ ॥ तदो एक्को वा दो वा तिण्णि वा समए अंतरं काऊण णिरंतरं वक्कमंति जाव उक्कस्सेण आवलियाए असंखेज्जदिभागो ॥ ५८५ ॥ तत्पश्चात् एक, दो और तीन समयसे लेकर उत्कर्षसे आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण कालका अन्तर करके आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण काल तक निरन्तर निगोद जीव उत्पन्न होते हैं ॥ ५८५ ॥ अप्पाबहुअं दुविहं- अद्धा अप्पाबहुअं चेव जीव अप्पाबहुअं चेव ।। ५८६ ॥ अल्पबहुत्त्व दो प्रकारका है- अद्धाअल्पबहुत्त्व और जीवअल्पबहुत्त्व ।। ५८६ ॥ अद्धाअप्पाबहुए ति सव्वत्थोवो सांतरसमए वक्कमणकालो ॥ ५८७ ॥ णिरंतरसमए वक्कमणकालो असंखेज्जगुणो ॥५८८॥ सांतरणिरंतरसमए वक्कमणकालो विसेसाहिओ॥ अद्धाअल्पबहुत्त्वकी अपेक्षा सान्तर समयमें उपक्रमणकाल सबसे स्तोक है ॥ ५८७ ।। उससे निरन्तर समयमें उपक्रमणकाल असंख्यातगुणा है ॥ ५८८ ॥ उससे सान्तरनिरन्तर समयमें उपक्रमणकाल विशेष अधिक है ॥ ५८९ ।। सव्वत्थोवो सांतरसमयवक्कमणकाल विसेसो ॥ ५९० ॥ सान्तर समयमें उपक्रमणकाल विशेष सबसे स्तोक है ॥ ५९० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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