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छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं
[५, ४, ४८५
उक्त देव और नारकी जब प्रथम समयवर्ती आहारक होकर तद्भवस्थ होनेके प्रथम समयमें जघन्य योगवाला होता है तब उसके वैक्रियिकशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र होता है ॥ ४८४ ॥
तव्वदिरित्तमजहण्णं ॥ ४८५॥ उससे भिन्न उसका अजघन्य प्रदेशाग्र होता है ।। ४८५ ॥
जहण्णपदेण आहारसरीरस्स जहण्णयं पदेसग्गं कस्स ॥४८६ ॥ अण्णदरस्स पमत्तसंजदस्स उत्तरं विउव्विदस्स ॥ ४८७ ॥ पढमसमयआहारयस्स पढमसमयतब्भवत्थस्स जहण्णजोगिस्स तस्स आहारसरीरस्स जहण्णयं पदेसग्गं ॥ ४८८ ॥
जघन्य पदकी अपेक्षा आहारकशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र किसके होता है ? ॥ ४८६ ॥ वह अन्यतर प्रमत्तसंयतके, जिसने कि उत्तर शरीरकी विक्रियाकी है, उसके वह होता है ॥४८७॥ वह जब प्रथम समयवर्ती आहारक होकर तद्भवस्थ होनेके प्रथम समयमें स्थित होता हुआ जघन्य योगसे संयुक्त होता है तब उसके उस समय आहारकशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र होता है ॥ ४८८ ॥
तव्वदिरित्तमजहण्णं ॥ ४८९ ॥ उससे भिन्न उसका अजघन्य प्रदेशाग्र होता है । ४८९ ।।
जहण्णपदेण तेजासरीरस्स जहण्णयं पदेसग्गं कस्स ? ॥ ४९० ॥ अण्णदरस्स सुहुमणिगोदजीव अपज्जत्तयस्स एयंताणुवड्ढिए वड्ढमाणयस्स जहण्णजोगिस्स तस्स तेयासरीरस्स जहण्णयं पदेसग्गं ॥ ४९१ ॥
जघन्य पदकी अपेक्षा तैजसशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र किसके होता है ? ॥ ४९० ॥ एकान्तानुवृद्धियोगसे वृद्धिको प्राप्त होनेवाले जघन्य योगयुक्त अन्यतर सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त जीवके उस तैजसशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र होता है ॥ ४९१ ॥
तव्वदिरित्तमजहणं ॥ ४९२ ॥ उससे भिन्न उसका अजघन्य प्रदेशाग्र होता है ॥ ४९२ ॥
जहण्णपदेण कम्मइयसरीरस्स जहण्णयं पदेसग्गं कस्स? ॥ ४९३ ॥ अण्णदरस्स जो जीवो सुहमणिगोदजीवेसु पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण ऊणयं कम्मट्ठिदिमच्छिदो एवं जहा वेयणाए वेयणीयं तहा णेयव्यं । णवरि थोपावसेसे जीविदव्वए त्ति चरिमसमयभवसिद्धिओ जादो तस्स चरिमसमयभवसिद्धियस्स तस्स कम्मइयसरीरस्स जहण्णयं पदेसग्गं ॥ ४९४ ॥
___ जघन्य पदकी अपेक्षा कार्मणशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र किसके होता है ? ॥ ४९३ ॥ अन्यतर जो जीव सूक्ष्म निगोद जीवोंमें पल्यके असंख्यातवें भागसे कम कर्मस्थिति प्रमाण काल तक रहा इस प्रकार जैसे वेदनाअनुयोगद्वारमें वेदनीय कर्मके जघन्य द्रव्यकी प्ररूपणा (सूत्र ७९-१०८)
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