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५, ४, ५०६ ]
बंधणाणियोगद्दारे सरीरपरूवणाए पदमीमांसा
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की गई है वैसे जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि जीवितव्यके स्तोक प्रमाणमें शेष रहजानेपर जो अन्तिम समयवर्ती भवसिद्धिक हुआ है उस अन्तिम समयवर्ती भवसिद्धिक जीवके कार्मणशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र होता है ॥ ४९४ ॥
तव्वदिरित्तमजहणं ॥ ४९५ ॥ उससे भिन्न उसका अजघन्य प्रदेशाग्र होता है ॥ ४९५ ॥
अप्पाबहुए ति सव्वत्थोवं ओरालियसरीरस्स पदेसग्गं ॥ ४९६ ॥ वेउम्चियसरीरस्स पदेसग्गमसंखेज्जगुणं ॥ ४९७ ॥ आहारसरीरस्स पदेसग्गमसंखेज्जगुणं ॥ ४९८ ॥ तेयासरीरस्स पदेसग्गमणंतगुणं ॥ ४९९ ॥ कम्मइयसरीरस्स पदेसग्गमणंतगुणं ॥ ५०० ॥
अपल्पबहुत्त्वकी अपेक्षा औदारिकशरीरका प्रदेशाग्र सबसे स्तोक है ।। ४९६ ॥ उससे वक्रियिकशरीरका प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है ॥ ४९७॥ उससे आहारकशरीरका प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है ॥ ४९८ ॥ उससे तैजसशरीरका प्रदेशाग्र अनन्तगुणा है ॥ ४९९ ॥ उससे कार्मणशरीरका प्रदेशाग्र अनन्तगुणा है ॥ ५०० ॥
सरीरविस्सासुवचयपरूवणदाए तत्थ इमाणि छ अणियोगद्दाराणि अविभागपलिच्छेदपरूवणा वग्गणपरूवणा फड्डयपरूवणा अंतरपरूवणा सरीरपरूवणा अप्पाबहुए ति ॥
___ अब शरीरविस्त्रसोपचयप्ररूपणा अधिकारप्राप्त है। उसमें ये छह अनुयोगद्वार हैंअविभागप्रतिच्छेदप्ररूपणा, वर्गणाप्ररूपणा, स्पर्धकप्ररूपणा, अन्तरप्ररूपणा, शरीरप्ररूपणा और अल्पबहुत्त्व ॥ ५०१ ॥
__ अविभागपडिच्छेदपरूवणदाए एककम्मि ओरालियपदेसे केवडिया अविभागपडिच्छेदा ? ॥ ५०२ ॥ अणंता अविभागपडिच्छेदा सव्वजीवेहि अणंतगुणा ॥ ५०३ ॥ एवडिया अविभागपडिच्छदा ॥ ५०४ ॥
___ अविभागप्रतिच्छेदप्ररूपणाकी अपेक्षा औदारिकशरीरके एक एक प्रदेशमें कितने अविभागप्रतिच्छेद होते हैं ? ॥ ५०२ ॥ उसके एक एक प्रदेशमें सब जीवोंसे अनन्तगुणे अनन्त अविभागप्रतिच्छेद होते हैं ॥ ५०३ ॥ इतने अविभागप्रतिच्छेद औदारिकशरीरके एक एक प्रदेशमें होते हैं।
वग्गणपरूवणदाए अणंता अविभागपडिच्छेदा सबजीवेहि अणंतगुणा एया वग्गणा भवदि । ५०५ ॥ एवमणंताओ वग्गण्णाओ अभवसिद्धिएहि अणंतगुणा सिद्धाणमणंतभागो ॥ ५०६ ॥
वर्गणाप्ररूपणाकी अपेक्षा सब जीवोंसे अनन्तगुणे ऐसे अनन्त अविभागप्रतिच्छेदोंकी एक वर्गणा होती है ॥ ५०५ ॥ इस प्रकार प्रत्येक स्थानमें अभव्योंसे अनन्तगुणी और सिद्धोंके अनन्तवें भाग प्रमाण अनन्त वर्गणायें होती हैं ॥ ५०६॥ .
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