Book Title: Shatkhandagam
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, 
Publisher: Walchand Devchand Shah Faltan

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Page 885
________________ ७६० ] छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं . [५, ४, ३५७ उससे अप्रथम गुणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशाग्र विशेष अधिक है ॥ ३५६ ॥ पढमेसु गुणहाणिट्ठाणतरेसु पदेसग्गं विसेसाहियं ॥ ३५७ ॥ उससे प्रथम गुणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशाग्र विशेष अधिक है ॥ ३५७ ॥ अचरिमेसु गुणहाणिहाणंतरेसु पदेसग्गं विसेसाहियं ॥ ३५८ ॥ उससे अचरम गुणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशाग्र विशेष अधिक है ॥ ३५८ ॥ सव्वेसु गुणहाणिट्ठाणंतरेसु पदेसग्गं विसेसाहियं ॥ ३५९ ॥ उससे सब गुणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशाग्र विशेष अधिक हैं ॥ ३५९ ॥ एवं तिण्णं सरीराणं ॥३६० ॥ जिस प्रकार औदारिकशरीरके उत्कृष्ट पदविषयक अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा की गई है उसी प्रकार वैक्रियिक, तैजस और कार्मण इन तीन शरीरोंकी भी प्रकृत प्ररूपणा जानना चाहिये ॥ सव्वत्थोवं आहारसरीरस्स चरिमगुणहाणिहाणंतरेसु पदेसग्गं ॥ ३६१ ॥ आहारकशरीरके अन्तिम गुणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशाग्र सबसे स्तोक है ॥ ३६१ ॥ अपढम-अचरिमेसु गुणहाणिहाणंतरेसु पदेसग्गं संखेज्जगुणं ॥ ३६२ ॥ उससे अप्रथम-अचरम गुणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशाग्र विशेष अधिक है ॥ ३६२ ॥ अपढमेसु गुणहाणिवाणंतरेसु पदेसग्गं विसेसाहियं ॥ ३६३ ॥ उससे अप्रथम गुणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशाग्र विशेष अधिक है ॥ ३६३ ॥ पढमे गुणहाणिहाणंतरे पदेसग्गं विसेसाहियं ॥ ३६४ ॥ उससे प्रथम गुणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशाग्र विशेष अधिक है ॥ ३६४ ॥ अचरिमेसु गुणहाणिट्ठाणंतरेसु पदेसग्गं विसेसाहियं ॥ ३६५ ॥ उससे अचरम गुणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशाग्र विशेष अधिक है ॥ ३६५ ॥ सव्वेसु गुणहाणिट्ठाणंतरेसु पदेसग्गं विसेसाहियं ॥ ३६६ ॥ उससे सब गुणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशाग्र विशेष अधिक है ॥ ३६६ ॥ जहण्णुक्कस्सपदेण सव्वत्थो ओरालियसरीरस्स चरिमाए द्विदीए पदेसग्गं । जघन्य-उत्कृष्ट पदकी अपेक्षा औदारिकशरीरकी अन्तिम स्थितिमें प्रदेशाग्र सबसे स्तोक है ॥ ३६७ ॥ चरिमे गुणहाणिहाणंतरे पदेसग्गमसंखेज्जगुणं ॥ ३६८ ॥ उससे अन्तिम गुणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है ॥ ३६८ ॥ पढमाए हिदीए पदेसग्गमसंखेज्जगुणं ।। ३६९ ॥ उससे प्रथम स्थितिमें प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है ।। ३६९ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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