Book Title: Shatkhandagam
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, 
Publisher: Walchand Devchand Shah Faltan

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Page 880
________________ ५, ४,३०३ ] बंधणाणियोगद्दारे सरीरपरूवणाए पदेसविरओ [७५५ पदेसविरए त्ति तत्थ इमो पदेसविरअस्स सोलसवदिओ दंडओ कायव्वो भवदि ॥ अब प्रदेशविरच (कर्मस्थिति अथवा कर्मप्रदेश ) अधिकार प्राप्त है। उसमें प्रदेशविरचका यह सोलहपदवाला दण्डक किया जाता है ॥ २८७ ॥ सव्वत्थोवा एइंदियस्स जहणिया पज्जत्तणिव्यत्ती ॥ २८८ ॥ णिव्वत्तिट्ठाणाणि संखेज्जगुणाणि ॥ २८९ ॥ जीवणियट्ठाणाणि विसेसाहियाणि ॥ २९० ॥ उक्कस्सिया णिव्यत्ती विसेसाहिया ॥ २९१ ॥ सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवकी पर्याप्तनिर्वृत्ति (जघन्य आयुबन्ध ) सबसे स्तोक है ॥२८८ ।। जघन्य आयुबन्धरूप उस प्रथम निर्वृत्तिस्थानके आगे समयोत्तर क्रमसे वृद्धिके होनेपर प्राप्त होनेवाले द्वितीय, तृतीय आदि सब निर्वृत्तिस्थान संख्यातगुणे हैं ॥ २८९ ॥ उनसे जीवनीयस्थान विशेष अधिक हैं ॥ २९० ॥ उनसे उत्कृष्ट निर्वृत्ति विशेष अधिक है ॥ २९१ ॥ सव्वत्थोवा समुच्छिमस्स जहणिया पज्जत्तणिव्यत्ती ॥२९२॥ णिव्वत्तिट्ठाणाणि संखेज्जगुणाणि ॥ २९३ ॥ जीवणियट्ठाणाणि विसेसाहियाणि ॥ २९४ ॥ उक्कस्सिया णिव्यत्ति विसेसाहिया ।। २९५ ॥ ____ सम्मूर्च्छन जीवकी जघन्य पर्याप्तनिवृत्ति सबसे स्तोक है ॥ २९२ ॥ उनसे निवृत्ति• स्थान संख्यातगुणे हैं ॥ २९३ ॥ उनसे जीवनीयस्थान विशेष अधिक हैं ॥ २९४ ॥ उनसे उत्कृष्ट निर्वृत्ति विशेष अधिक है ॥ २९५ ॥ सव्वत्थोवा गब्भोवकंतियस्स जहणिया पज्जत्तणिवत्ती ॥ २९६ ॥ णिव्वत्तिट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि ॥ २९७ ॥ जीवणियट्ठाणाणि विसेसाहियाणि ॥ २९८॥ उक्कस्सिया णिव्यत्ती विसेसाहिया ॥ २९९ ॥ गर्भोपक्रान्तिक जीवकी जघन्य पर्याप्त निर्वृत्ति सबसे स्तोक है ॥ २९६ ॥ उनसे निर्वृत्तिस्थान असंख्यातगुणे हैं ॥२९७ ॥ उनसे जीवनीयस्थान विशेष अधिक हैं ॥२९८॥ उनसे उत्कृष्ट निर्वृत्ति विशेष अधिक है ।। २९९ ॥ सव्वत्थोवा उववादिमस्स जहणिया पज्जत्तणिव्वत्ती ॥ ३००॥ णिव्वत्तिट्ठाणाणि जीवणियट्ठाणाणि च दो वि तुल्लाणि असंखेज्जगुणाणि ॥ ३०१॥ उक्कस्सिया णिवत्ति विसेसाहिया ॥ ३०२ ॥ औपपादिक जन्मवालेकी जघन्य पर्याप्त निर्वृत्ति सबसे स्तोक है ॥ ३०० ॥ उससे निवृत्तिस्थान और जीवनीयस्थान दोनों ही तुल्य होकर असंख्यातगुणे हैं ॥ ३०१ ॥ उनसे उत्कृष्ट निर्वृत्ति विशेष अधिक है ॥ ३०२ ॥ एत्थ अप्पाबहुअं ॥ ३०३ ॥ अब यहां अल्पबहुत्त्वकी प्ररूपणा की जाती है ॥ ३०३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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