Book Title: Shatkhandagam
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, 
Publisher: Walchand Devchand Shah Faltan

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Page 879
________________ ७५४ ] छक्खंडागमे वग्गणा-खंड [५, ४, २७९ ___जो आहारकशरीरवाला जीव है उसी प्रथम समयवर्ती आहारक और प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ जीवके द्वारा आहारकशरीररूपसे जो प्रथम समयमें प्रदेशाग्र निक्षिप्त होता है उससे अन्तर्मुहूर्त जाकर वह दुगुणा हीन होता है ।। २७७ । इस प्रकारसे वह अन्तर्मुहूर्त प्राप्त होने तक दुगुणा हीन दुगुणा हीन होता गया है ॥ २७८ ॥ ___ एयपदेसगुणहाणिट्ठाणंतरमंतोमुहुत्तं, णाणापदेसगुणहाणिट्ठाणंतराणि संखेज्जा समया ॥ २७९ ॥ एकप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है और नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर संख्यात समय प्रमाण हैं ॥ २७९ ॥ ..णाणापदेसगुणहाणिट्ठाणंतराणि थोवाणि ।। २८० ॥ एयपदेसगुणहाणिट्ठाणंतरमसंखेज्जगुणं ॥ २८१ ॥ नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर स्तोक हैं ।। २८० ॥ उनसे एकप्रदेश गुणहानिस्थानान्तर असंख्यातगुणा है ॥ २८१ ॥ तेजा-कम्मइयसरीरिणा तेजा-कम्मइयसरीरत्ताए जं पढमसमए पदेसग्गं तदो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागं गंतूण दुगुणहीणं, पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागं गंतूण दुगुणहीणं ॥ २८२ ॥ तैजसशरीरवाले जीवके द्वारा तैजसशरीररूपसे प्रथम समयमें जो प्रदेशाग्र निक्षिप्त होता है उससे पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण स्थान जाकर वह दुगुणा हीन होता है। इसी प्रकार कार्मणशरीरवाले जीवके द्वारा कार्मणशरीररूपसे जो प्रदेशाग्र प्रथम समयमें निक्षिप्त होता है वह भी पल्योपमके असंख्यातवें भाग स्थान जाकर दुगुणा हीन होता है ।। २८२ ॥ एवं दुगुणहीणं दुगुणहीणं जाव उक्कस्सेण छावहिसागरोवमाणि कम्मद्विदी ॥ इस प्रकार उत्कृष्ट रूपसे वह तैजसशरीरका छयासठ सागर और कार्मणशरीरका कर्मस्थितिके अन्त तक दुगुणा हीन दुगुणा हीन होता हुआ गया है ॥ २८३ ॥ एयपदेसगुणहाणिट्ठाणंतरमसंखेज्जाणि पलिदोवमवग्गमूलाणि णाणापदेसगुणहाणिट्ठाणंतराणि पलिदोवमवग्गमूलस्स असंखेज्जदिभागो ॥ २८४ ॥ एकप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूल प्रमाण हैं और नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर पल्योपमके प्रथम वर्गमूलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है ॥ २८४ ॥ ___णाणापदेसगुणहाणिट्ठाणंतराणि थोवाणि ॥ २८५ ॥ एयपदेसगुणहाणिट्ठाणंतरं असंखेज्जगुणं ॥ २८६॥ नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर स्तोक हैं ॥ २८५ ॥ उनसे एकप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर असंख्यातगुणा है ॥ २८६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary:org

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