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बंधणाणियोगदारे सरीरिपरूवणाए अंतरोवणिधा
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तेजाकम्मइयसरीरिणा तेजाकम्मइयसरीरत्ताए जं पढमसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं बहुअं ।। २६८ ।। जं विदियसमए पदेसरगं णिमित्तं तं विसेसहीणं ।। २६९ ।। जं तदियसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं विसेसहीणं ॥ २७० ॥ एवं विसेसहीणं विसेसहीणं जाव उक्कस्सेण छावसिागरोवमाणि कम्मट्ठी ॥ २७९ ॥
तैजसशरीर और कार्मणशरीरवाले जीवके द्वारा तैजसशरीर और कार्मणशरीररूपसे जो प्रदेशाग्र प्रथम समयमें निषिक्त हुआ है वह बहुत है ॥ २६८ ॥ जो प्रदेशाग्र द्वितीय समय में निषिक्त हुआ है वह विशेष हीन है ॥ २६९ ॥ जो प्रदेशाग्र तृतीय समयमें निषिक्त हुआ है वह विशेष ही है ॥ २७० ॥ इस प्रकार वह क्रमसे छ्यासठ सागर और कर्मस्थितिके अन्त तक विशेष विशेष हीन होता गया है ॥ २७९ ॥
५, ४, २७८ ]
परंपरोवणिधाए ओरालिय-वेउन्चियसरीरिणा तेणेव पढमसमय- आहारएण पढमसमयतब्भवत्थेण ओरालिय- वेउब्विय सरीरत्ताए जं पढमसमयपदेसगं तदो अंतोमुहुतं गंतून दुहीणं ॥ २७२ ॥
परम्परोपनिधाकी अपेक्षा जो औदारिकशरीरवाला और वैक्रियिकशरीरवाला जीव है उसी प्रथम समयवर्ती आहारक और प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ जीवके द्वारा औदारिकशरीर और वैक्रियिकशरीररूपसे जो प्रथम समय में प्रदेशाग्र निक्षिप्त हुआ है उससे अन्तर्मुहूर्त जाकर वह दुगुणा हीन हो जाता है || २७२ ॥
एवं दुगुणहीणं दुगुणहीणं जाव उक्कस्सेण तिष्णि' पलिदोवमाणि तेत्तीसं सागरोवमाणि ।। २७३ ॥
इस क्रमसे वह उत्कृष्ट रूपसे तीन पल्य और तेतीस सागरोपम तक दुगुणा हीन होता गया है || २७३ ॥
एगपदेस गुणहाणिट्ठाणंतरमंतोमुहुतं, णाणापदेसगुणहाणिट्ठाणंतराणि पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ॥ २७४ ॥
एकप्रदेश गुणहानिस्थानान्तर अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है तथा नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं || २७४ ॥
एयपदेसगुणहाणिट्ठाणंतरं थोवं ॥ २७५ ॥ णाणापदेसगुणहाणिड्डाणंतराणि असंखेज्जगुणाणि ।। २७६ ।।
एकप्रदेश गुणहानिस्थानान्तर स्तोक है || २७५ ॥ उससे नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर असंख्यातगुणे हैं ।। २७६ ।।
आहारसरीरिणा तेणेव पढमसमयआहारएण पढमसमयतब्भवत्थेण आहारसरीरत्ताए जं पढमसमए पदेसग्गं तदो अंतोमुहुत्तं गंतूण दुगुणहीणं ॥ २७७ ॥ एवं दुगुणहीणं दुगुणati जावुक्कस्से अंतोमुहुत्तं ॥ २७८ ॥
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