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५, ४, २५७ ]
बंधणाणियोगद्दारे सरीरपरूवणाए समुक्कित्तणा
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कार्मणशरीरयुक्त जीवने कार्मणशरीरस्वरूपसे जिस प्रदेशाग्रको बांधा है उसमें से कुछ प्रदेशाग्र जीव में एक समय अधिक आवली काल तक, कुछ दो समय अधिक आवली काल तक, और कुछ तीन समय अधिक आवली काल तक इस क्रमसे वह उत्कर्षतः कर्मस्थिति काल तक रहता है ॥ २४८ ॥
पदेसपमाणाणुगमेण ओरालिय - वेउच्चिय - आहारसरीरिणा तेणेव पढमसमय आहारएण पढमसमयतन्भवत्थेण ओरालिय- वेडव्त्रिय आहारसरीरत्ताए जं पढमसमए पदेसरगं णिसित्तं तं केवडिया ? ।। २४९ ॥
प्रदेशप्रमाणानुगमकी अपेक्षा जो औदारिकशरीरवाला, वैक्रियिकशरीरवाला और आहारकशरीरवाला जीव है, उसी प्रथम समयवर्ती आहारक और प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ जीव द्वारा औदारिकशरीर, वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीर रूप से जो प्रदेशाग्र प्रथम समय में बांधा गया हैं वह कितना है ? || २४९ ॥
अभवसिद्धिएहि अनंतगुणो सिद्धाणमणंतभागो ।। २५० ॥
वह अभव्यों से अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्त भाग प्रमाण है || २५० ॥ जं विदियसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं केवडिया ? ।। २५१ || अभवसिद्धिएहि अनंतगुणो सिद्धामणंतभागो ।। २५२ ।।
जो प्रदेशाग्र द्वितीय समय में निषिक्त होता है वह कितना है ? ॥ २५९ ॥ वह अभव्योंसे अनंतगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भाग प्रमाण है || २५२ ॥
जं तदियसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं केवडिया ! || २५३ || अभवसिद्धिएहि अतगुणो सिद्धामत भागो ।। २५४ ॥
जो प्रदेशाग्र तृतीय समय में निषिक्त होता है वह कितना है ? ॥ २५३ ॥ वह अभव्यों से अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्त भाग प्रमाण है || २५४ ॥
एवं जाव उक्कस्से तिष्णिपलिदोवमाणि तेत्तीस सागरोवमाणि अंतोमुहुत्तं ॥
इस प्रकार चार समय और पांच समय आदिके क्रमसे उत्कर्षतः उक्त तीन शरीरोंकी स्थिति के अनुसार क्रमशः तीन पल्योपम, तेतीस सागर और अन्तर्मुहूर्त काल तक निषिक्त उस प्रदेश के प्रमाणको जानना चाहिये ।। २५५ ॥
तेजा - कम्म यसरीरिणा तेजा - कम्मइयसरीरत्ताए जं पढमसमए पदेसग्गं णिमित्तं तं केवडिया १ ।। २५६ ।। अभवसिद्धिएहि अनंतगुणो सिद्धाणमणंतभागो ॥ २५७ ॥
तैजसशरीरवाले और कार्मणशरीरवाले जीवके द्वारा तैजसशरीर और कार्मणशरीररूपसे जो प्रदेश प्रथम समयसें निषिक्त होता है वह कितना है ? ॥ २५६ ॥ वह अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भाग प्रमाण है ।। २५७ ॥
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