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७५२ ] छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं
[ ५, ४, २५८ जं विदियसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं केवडिया ? ॥ २५८ ॥ अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो सिद्धाणमणंतभागो ॥ २५९ ॥
जो प्रदेशाग्र द्वितीय समयमें निषिक्त होता है वह कितना है ? ॥ २५८ ॥ अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भाग प्रमाण है ॥ २५९ ॥
जं तदियसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं केवडिया ? ॥ २६० ॥ अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो सिद्धाणमणंतभागो ॥ २६१ ॥
जो प्रदेशाग्र तृतीय समयमें निषिक्त होता है वह कितना है ? ॥ २६० ॥ वह अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भाग प्रमाण है ॥ २६१ ॥
एवं जाव उक्कस्सेण छावट्ठिसागरोवमाणि कम्मविदी ॥ २६२ ॥
इस प्रकार चार समय और पांच समय आदिके क्रमसे तैजसशरीरके छयासठ सागरोपम काल तक तथा कार्मणशरीरके कर्मस्थिति काल तक निषिक्त प्रदेशाग्रके प्रमाणको जानना चाहिये ॥
अणंतरोवणिधाए ओरालिय-वेउब्बिय-आहारसरीरिणा तेणेव पढमसमय-आहारएण पढमसमय तब्भवत्थेण ओरालिय-उब्धिय-आहारसरीरत्ताए जं पढमसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं बहुअं ॥ २६३ ॥
अनन्तरोपनिधाकी अपेक्षा जो औदारिक शरीरवाला, वैक्रियिकशरीरवाला और आहारकशरीरवाला जीव है उसी प्रथम समयवर्ती आहारक और प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ जीवके द्वारा औदारिकशरीर, वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीररूपसे जो प्रदेशाग्र प्रथम समयमें निषिक्त हुआ है वह बहुत है ॥ २६३ ॥
जं विदियसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं विसेसहीणं ॥ २६४ ॥ जो द्वितीय समयमें प्रदेशाग्र निषिक्त हुआ है वह विशेष हीन है ॥ २६४ ॥ जं तदियसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं विसेसहीणं ॥ २६५ ॥ जो तृतीय समयमें प्रदेशाग्र निषिक्त हुआ है वह विशेष हीन है ॥ २६५ ॥ जं चउत्थसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं विसेसहीणं ॥ २६६ ॥ जो चतुर्थ समयमें प्रदेशाग्र निषिक्त हुआ है वह विशेष हीन है ॥ २६६ ॥
एवं विसेसहीणं विसेसहीणं जाव उक्कस्सेण तिण्णि पलिदोवमाणि तेत्तीस सागरोवमाणि अंतोमुहुत्तं ॥ २६७ ॥
इस प्रकार उत्कृष्ट रूपसे क्रमश: तीन पल्य, तेतीस सागर और अन्तर्मुहूर्त तक वह विशेष हीन विशेष हीन होता गया है ॥ २६७ ॥
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