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४, २, ६, २६६ ] dr महाहियारे वेयणकालविहाणे द्विदिबंधझवसाणपरूवणा
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एवं विसेसाहियाणि विसेसाहियाणि जाव उक्कस्सिया द्विदिति ।। २५६ ।।
इस प्रकार वे उत्कृष्ट स्थिति तक अनन्तर अनन्तर क्रमसे उत्तरोत्तर विशेष अधिक विशेष अधिक हैं ।। २५६ ॥
एवं छण्णं कम्माणं ।। २५७ ।।
इसी प्रकार आयुको छोड़कर शेष छह कर्मोकी अनन्तरोपनिधाकी प्ररूपणा जानना चाहिये || २५७ ॥
आउअस जहणिया ट्ठिदिए द्विदिबंधझवसाद्वाणाणि थोवाणि ।। २५८ ।। आयु कर्मकी जधन्य स्थितिके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान स्तोक हैं || २५८ ॥ बिदियाए दिए द्विदिबंधज्झवसाणट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि ।। २५९ ।। द्वितीय स्थितिके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हैं ।। २५९ ॥ दियाए द्विदीए ट्ठदिबंध ज्झवसाणद्वाणाणि असंखेज्जगुणाणि ॥ २६० ॥ तृतीय स्थितिके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे है || २६० ॥ एवमसंखेज्जगुणाणि असंखेज्जगुणाणि जाव उक्कस्सिया द्विदिति ।। २६१ ॥ इस प्रकार वे उत्कृष्ट स्थिति तक उत्तरोत्तर असंख्यातगुणे असंख्यातगुणे होते गये हैं । परंपरोवणिधाए णाणावरणीयस्स जहणियाए हिदीए ट्ठिदिबंधज्झवसाणड्डाणेहिंतो दो पदोवमस्स असंखेज्जदिभागं गंतूण दुगुणवदिदा ।। २६२ ।।
परम्परोपनिधाकी अपेक्षा ज्ञानावरणीयकी जघन्य स्थितिके स्थितिबन्धध्यवसानस्थानोंकी अपेक्षा उनसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र जाकर वे दुगुणी वृद्धिको प्राप्त हुए हैं ।। २६२ ॥ एवं गुणवदा गुणवड्ढिदा जाव उक्कस्सिया विदिति ।। २६३ ।। इस प्रकार वे उत्कृष्ट स्थिति तक दुगुणी दुगुणी वृद्धिको प्राप्त हुए हैं ।। २६३ ॥ एयट्ठिदिबंधज्झत्रसाणदुगुणवड्ढि - हाणिट्टाणंतरं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ॥ एक स्थितिसम्बन्धी अध्यवसानोंके दुगुण- दुगुणवृद्धिहानि स्थानोंका अन्तर पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण है ॥ २६४ ॥
णाणाट्ठिदिबंधज्झत्रसाणदुगुणवड्ढि - हाणिट्ठाणंतराणि अंगुलवग्गमूलछेदणाण असंखेज्जदिभागो ।। २६५ ॥
नानास्थितिबन्धाध्यवसानों सम्बन्धी दुगुण- दुगुणवृद्धि हानिस्थानान्तर अंगुल सम्बन्धी वर्गमूलके अर्धच्छेदोंके असंख्यातवें भाग प्रमाण है ।। २६५ ।।
णाणाठिदिबंध ज्झवसादु गुणवड्ढि - हाणिट्ठाणंतराणि थोवाणि ॥ २६६ ॥ नानास्थितिबन्धाध्यवसानद्गुणवृद्धिहानिस्थानान्तर स्तोक हैं ॥ २६६ ॥
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