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छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं
[५, ३, १९७
अपर्याप्त, बादर अग्निकायिक अपर्याप्त, बादर वायुकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म अग्निकायिक और सूक्ष्म वायुकायिक एवं उनके पर्याप्त-अपर्याप्त तथा त्रसकायिक अपर्याप्त जीवोंमें दो शरीरवाले सबसे स्तोक हैं ॥ १९५ ॥ उनसे तीन शरीरवाले असंख्यातगुणे हैं ॥ १९६ ॥
तेउकाइय-वाउकाइय-बादरतेउकाइय-बादरवाउकाइयपज्जत्ता तसकाइया तसकाइयपज्जत्ता पंचिंदियपज्जनभंगो ॥ १९७॥
अग्निकायिक, वायुकायिक, बादर अग्निकायिक, बादर अग्निकायिक पर्याप्त, बादर वायुकायिक और बादर वायुकायिक पर्याप्त तथा त्रसकायिक और त्रसकायिक पर्याप्त जीवोंकी प्ररूपणा पंञ्चेन्द्रिय पर्याप्तकोंके समान है ॥ १९७ ॥
जोगाणुवादेण पंचमणजोगि-पंचवचिजोगीसु सव्वत्थोवा चदुसरीरा ॥ १९८ ॥ तिसरीरा असंखेज्जगुणा ॥ १९९ ॥
___ योगमार्गणाके अनुवादसे पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी जीवोंमें चार शरीरवाले सबसे स्तोक हैं ॥ १९८ ॥ उनसे तीन शरीरवाले असंख्यातगुणे है ॥ १९९ ।।
कायजोगी ओघं ॥ २०० ॥ काययोगवाले जीवोंकी प्ररूपणा ओघके समान हैं ॥ २०० ॥ ओरालियकायजोगिसु सव्वत्थोवा चदुसरीरा ॥ २०१॥ तिसरीरा अणंतगुणा ॥
औदारिककाययोगी जीवोंमें चार शरीरवाले सबसे स्तोक हैं ॥ २०१॥ उनसे तीन शरीरवाले असंख्यातगुणे हैं ॥ २०२ ॥
___ ओरालियमिस्सकायजोगि वेउब्बियकायजोगि-वेउव्वियमिस्सकायजोगि-आहारकायजोगि-आहारमिस्सकायजोगीसु णत्थि अप्पाबहुरं ॥ २०३ ॥
___ औदारिकमिश्रकाययोगी, वैक्रियिककाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें एक ही पदकी सम्भावना होनेसे अल्पबहुत्त्व नहीं है ॥२०३ ॥
कम्मइयकायजोगीसु सव्वत्थोवा तिसरीरा ॥ २०४ ॥ विसरीरा अणंतगुणा ॥
कार्मणकाययोगी जीवोंमें तीन शरीरवाले सबसे स्तोक हैं ॥ २०४ ॥ उनसे दो शरीरवाले अनन्तगुणे हैं ॥ २०५॥
वेदाणुवादेणइत्थिवेद-पुरिसवेदा पंचिंदियभंगो ॥ २०६ ॥
वेदमार्गणाके अनुवादसे स्त्रीवेदवाले और पुरुषवेदवाले जीवोंकी प्ररूपणा पंचेन्द्रियोंके समान है ।। २०६ ॥
__णqसयवेदा कसायाणुवादेण कोधकसाई माणकसाई मायकसाई लोभकसाई ओघं ।
नपुसंकवेदवाले जोवोंकी तथा कषायमार्गणाके अनुवादसे क्रोधकषायवाले, मानकषायवाले, मायाकषायवाले और लोभकषायवाले जीवोंकी भी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ २०७ ।।
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