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५, ३, १९६ ] बंधणाणियोगद्दारे सरीरिसरीरपरूवणाए अप्पाबहुअपरूवणा
मणुसअपज्जत्ता पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तभंगो ।। १८५ ॥
मनुष्य अपर्याप्तकों की प्ररूपणा पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तकोंके समान है ॥ १८५ ॥ देवदीए देवा सव्वत्थोवा विसरीरा || १८६ | | तिसरीरा असंखेज्जगुणा ॥ १८७॥ देवगतिकी अपेक्षा देवोंमें दो शरीरवाले सबसे स्तोक हैं ॥ १८६ ॥ उनसे तीन शरीरवाले असंख्यातगुणे हैं ॥ १८७ ॥
एवं भवणवासिय पहुडि जाव अवराइदविमाणवासियदेवा त्ति यव्वं ॥ १८८ ॥ इसी प्रकार प्रकृत अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा भवनवासियोंसे लेकर अपराजित विमानवासी देवों तक जानना चाहिये ॥ १८८ ॥
सव्वद्धिसिद्धिविमाणवासियदेवा सव्वत्थोवा विसरीरा ॥ १८९ ॥ तिसरीरा संखेज्जगुणा ।। १९० ।
सर्वार्थसिद्धिविमानवासी देवोंमें दो शरीरवाले सबसे रतोक हैं ॥ १८९ ॥ उनसे तीन शरीरवाले संख्यातगुणे हैं ॥ १९० ॥
इंदियाणुवादेण एइंदिया बादरइंदियपज्जत्ता ओघं ॥। १९१ ॥
इन्द्रियमार्गणाके अनुवाद से एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय और बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकों की प्ररूपणा ओघके समान है ॥ १९९ ॥
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बादरेइंदियअपज्जत्ता सुहुमेइंदियपज्जत्तापज्जत्ता वीइंदिय-तीइंदिय- चउरिंदियपज्जत्ता अपज्जत्ता पंचिंदियअपज्जत्ता सव्वत्थोवा विसरीरा ।। १९२ ।। तिसरीरा असंखेज्जगुणा ।। १९३ ।।
बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त, सूक्ष्म एकेन्द्रिय व उनके पर्याप्त अपर्याप्त, तथा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय व उनके पर्याप्त अपर्याप्त तथा पंचेन्द्रिय अपर्याप्त जीवों में दो शरीरवाले सबसे स्तोक हैं ॥ ९९२ ॥ उनसे तीन शरीरवाले असंख्यातगुणे हैं ॥ १९३ ॥
पंचिदिय-पंचिदिययज्जत्ता मणुसगदिभंगो ॥ १९४ ॥
पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्तकोंकी प्ररूपणा मनुष्यगतिके समान है ॥ १९४ ॥ कायावादेण पुढविकाइया आउकाइया वणफदिकाइया णिगोदजीवा बादरा हुमा पज्जता अपज्जत्ता बादरवणष्पदिकाइयपत्तेयसरीरा पज्जत्ता अपज्जत्ता बादरतेकाइय-बादरवाउकाइयअपज्जत्ता सुहुमते उकाइय-मुहुमवाउकाइयपज्जत्ता अपज्जत्ता तसकाइयअपज्जत्ता सव्वत्थोवा विसरीरा ।। १९५ ।। तिसरीरा असंखेज्जगुणा ।। १९६ ।।
कायमाणा के अनुवाद से पृथिवीकायिक, जलकायिक, वनस्पतिकायिक, निगोदजीव तथा उनके बाद, सूक्ष्म, पर्याप्त और अपर्याप्त; बाहर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर और उनके पर्याप्त
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