Book Title: Shatkhandagam
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, 
Publisher: Walchand Devchand Shah Faltan

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Page 869
________________ ७४४ ] छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं [५, ३, १६८ अप्पाबहुगाणुगमेण दुविहो णिद्देसो ओघेण आदेसेण य ॥ १६८ ॥ अल्पबहुत्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है- ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश ॥ ओघेण सव्वत्थोवा चदुसरीरा ॥१६९॥ असरीरा अणंतगुणा ॥१७०॥ विसरीरा अणंतगुणा ॥ १७१ ॥ तिसरीरा असंखेज्जगुणा ॥ १७२ ॥ ओघसे चार शरीरवाले जीव सबसे स्तोक हैं ॥ १६९॥ उनसे अशरीरी जीव अनन्तगुणे हैं ॥ १७० ॥ उनसे दो शरीरवाले जीव अनन्तगुणे हैं ॥ १७१ ॥ उनसे तीन शरीरवाले जीव असंख्यातगुणे हैं ॥ १७२ ॥ ___ आदेसेण गदियाणुवादेण णिरयगदीए णेरइएसु सव्वत्थोवा विसरीरा ॥ १७३ ॥ तिसरीरा असंखेज्जगुणा ॥ १७४ ॥ आदेशकी अपेक्षा गतिमार्गणाके अनुवादसे नरकगतिसे नारकियोंमें दो शरीरवाले जीव सबसे स्तोक हैं ॥ १७३ ॥ उनसे तीन शरीरवाले जीव असंख्यातगुणे हैं ॥ १७४ ॥ एवं जाव सत्तसु पुढवीसु ॥ १७५ ॥ इसी प्रकार प्रकृत अपबहुत्वकी प्ररूपणा सातों ही पृथिवीयोंमें जानना चाहिये ॥१७५|| तिरिक्खगदीए तिरिक्खेसु ओघं ॥ १७६ ॥ तिर्यंचगतिकी अपेक्षा सामान्य तिर्यंचोंमें प्रकृत प्ररूपणा ओघके समान है ॥ १७६ ॥ पंचिंदियतिरिक्ख -पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्त -पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीसु सव्वत्थोवा चदुसरीरा ॥१७७॥ विसरीरा असंखेज्जगुणा ॥१७८ ॥ तिसरीरा असंखेज्जगुणा ॥ ___पंचेन्द्रिय तिर्यंच, पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त और पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिनियोंमें चार शरीरवाले जीव सबसे स्तोक हैं ॥ १७७ ॥ उनसे दो शरीरवाले जीव असंख्यातगुणे हैं ॥ १७८ ॥ उनसे तीन शरीरवाले जीव असंख्यातगुणे हैं ॥ १७९ ॥ पंचिंदियतिरिक्ख अपज्जत्ता णेरइयाणं भंगो ॥ १८० ॥ पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तकोंकी प्ररूपणा नारकियोंके समान है ॥ १८० ॥ मणुसगदीए मणुसा पंचिंदियतिरिक्खाणं भंगो ॥ १८१ ॥ मनुष्यगतिकी अपेक्षा सामान्य मनुष्योंमें प्रकृत अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा पञ्चेन्द्रिय तिर्यंचोंके समान है ॥ १८१ ॥ मणुसपज्जत्त-मणुसिणीसु सव्वत्थोवा चदुसरीरा ॥ १८२ ॥ विसरीरा संखेज्जगुणा ॥ १८३ ॥ तिसरीरा संखेज्जगुणा ॥ १८४ ॥ मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें चार शरीरवाले जीव सबसे स्तोक हैं ॥१८२ ॥ उनसे दो शरीरवाले संख्यातगुणे हैं ॥ १८३ ॥ उनसे तीन शरीरवाले संख्यातगुणे हैं ॥ १८४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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