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छक्खंडागमे वग्गणा - खंड
[ ५, ३, १४७
उक्त तीन योगवालों के आहारकशरीर के ( उदयकी ) सम्भावना न होनेसे तथा अपर्याप्तकालमें विक्रियशक्तिके भी सम्भव न होनेसे उनमें चार शरीरोंकी सम्भावना नहीं हैं । आहारकायजोगी आहारमिस्सकायजोगी अस्थि जीवा चदुसरीरा ॥ १४७ ॥ आहारक काययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीव चार शरीरवाले होते हैं ॥ १४७ ॥ कम्मइयकायजोगी रइयाणं भंगो ।। १४८ ॥
कार्मणकाययोगी जीवोंकी प्ररूपणा नारकियोंके समान है ॥ १४८ ॥
१४९ ॥
वेदाणुवादेण इत्थवेदा पुरिसवेदा णवुंसयवेदा ओघं ॥ वेदमार्गणाके अनुवाद से स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी और नपुसंकवेदी जीवोंकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ १४९ ॥
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कसायाणुवादेण को कसाई माणकसाई मायकसाई लोभकसाई ओघं ॥ १५० ॥ कषायमार्गणाके अनुवादसे क्रोधकषायवाले, मानकषायवाले, मायाकषायवाले और लोभकषायवाले जीवोंकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ १५० ॥
अवगदवेदा अकसाई अस्थि जीवा तिसरीरा ।। १५१ ।।
अपगतवेदी और अकषायवाले जीव औदारिक, तैजस और कार्मण इन तीन शरीरोंवाले होते हैं ॥ १५१ ॥
णाणाणुवादेण मदिअण्णाणी सुदअण्णाणी ओघं ।। १५२ ।।
ज्ञानमार्गणाके अनुवादसे मत्यज्ञानी और श्रुतज्ञानी जीवोंकी प्ररूपणा ओघके समान है || विभंगणाणी मणपज्जवणाणी अत्थि जीवा तिसरीरा चदुसरीरा ।। १५३ ॥ विभंगज्ञानी और मन:पर्ययज्ञानी जीव तीन शरीरवाले और चार शरीरवाले होते हैं ॥ आभिणि-सुद-ओहिणाणी ओघं ।। १५४ ॥
आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ केवलणाणी अस्थि जीवा तिसरीरा ।। १५५ ॥
केवलज्ञानी जीव तीन शरीरवाले होते हैं ।। १५५ ।।
संजमाणुवादेण संजदा सामाइय-छेदोवट्ठावणसुद्धिसंजदा संजदासंजदा अस्थि जीवा तिसरीरा चदुसरीरा ॥ १५६ ॥
संयममार्गणाके अनुवाद से संयत, सामायिकशुद्धिसंयत, छेदोपस्थानाशुद्धिसंयत और संयतासंयत जीव तीन शरीरवाले और चार शरीरवाले होते हैं ।। १५६ ॥
विग्रहगतिकी सम्भावना न होनेसे उनमें दो शरीरवाले नहीं होते ।
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