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७४०] छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
[५, ३, १३२ औदारिक, वैक्रियिक, तैजस और कार्मण अथवा औदारिक, आहारक, तैजस और कार्मण इन चार शरीरोंसे संयुक्त जीवोंको चतुःशरीर जानना चाहिये ।
आदेसेण गदियाणुवादेण णिरयगईए गैरइएसु अत्थि जीवा विसरीरा तिसरीरा ॥
आदेशसे, गतिमार्गणाके अनुवादसे नरकगतिकी अपेक्षा नारकियोंमें दो शरीरवाले (विग्रहातिमें) और तीन शरीरवाले जीव हैं ।। १३२ ॥
एवं सत्तसु पुढवीसु णेरइया ॥ १३३ ॥
इसी प्रकार सातों पृथिवियोंमें अवस्थित नारकियोंको विग्रहगतिमें द्विशरीर तथा तत्पश्चात् त्रिशरीर जानना चाहिये ॥ १३३ ॥
तिरिक्खगदीए तिरिक्ख - पंचिंदियतिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्त-पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीसु ओघं ॥ १३४ ॥
तिर्यंञ्चगतिमें तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तिर्यंचपर्याप्त और पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिनी जीवोंमें प्रकृत प्ररूपणा ओघके समान है ॥ १३४ ॥
पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्ता अत्थि जीवा विसरीरा तिसरीरा ॥ १३५ ॥
पंचेन्द्रियतिर्यंच अपर्याप्त जीव दो शरीरवाले और तीन शरीरवाले होते हैं उनमें चार शरीर सम्भव नहीं हैं ॥ १३५ ॥
__ मणुसगदीए मणुस-मणुसपज्जत्त-मणुसिणीसु ओघं ॥ १३६ ॥
मनुष्यगतिमें सामान्य मनुष्य, मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यनियोंमें प्रकृत प्ररूपणा ओघ के समान है ॥ १३६ ॥
मणुसअपज्जत्ता अस्थि जीवा विसरीरा तिसरीरा ॥ १३७ ॥ मनुष्य अपर्याप्त दो शरीरवाले और तीन शरीरवाले होते हैं ॥ १३७ ॥ देवगदीए देवा अत्थि जीवा विसरीरा तिसरीरा ॥ १३८ ॥ देवगतिमें देव दो शरीरवाले और तीन शरीरवाले होते हैं । १३८ ॥ एवं भवणवासियप्पहुडि जाव सव्वट्ठसिद्धियविमाणवासियदेवा ॥ १३९ ॥ इसी प्रकार भवनवासियोंसे लेकर सर्वार्थसिद्धि विमानवासी तकके देवोंमें जानना चाहिये ।
इंदियाणुवादेण एइंदिया बादरेइंदिया तेसिं पज्जत्ता पंचिंदियपंचिंदियपज्जत्ता ओघं ॥ १४०॥
इन्द्रियमार्गणाके अनुवादसे एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय और उनके पर्याप्त जीवोंकी तथा पञ्चेन्द्रिय और पञ्चेन्द्रियपर्याप्त जीवोंकी प्ररूपणा ओधके समान है ॥ १४० ॥
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