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छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं
[५, ३, १२१
तत्थ इमं साहारणलक्खणं भणिदं ॥ १२१ ॥ उनमें साधारणका यह लक्षण कहा गया है ॥ १२१ ॥ साहारणमाहारो साहारणमाणपाणगहणं च । साहारणजीवाणं साहारणलक्खणं भणिदं ॥ १२२ ॥
साधारण आहार और साधारण उच्छ्वास-निश्वासका ग्रहण, यह साधारण जीवोंका साधारण लक्षण कहा गया है ।। १२२ ॥
अभिप्राय यह है कि एक ही शरीरमें अवस्थित जिन अनन्त जीवोंमें एक जीवके द्वारा आहार ग्रहण करनेपर सबका आहार तथा एकके उच्छवास-निःश्वास लेनेपर सबका उच्छ्वास-निश्वास होता है वे साधारणवनस्पतिकायिक जीव कहलाते हैं।
एयस्स अणुग्गहणं बहूण साहारणाणमेयस्स । एयस्स जं बहूणं समासदो तं पि होदि एयस्स ॥ १२३॥
एक जीवका जो अनुग्रहण अर्थात् पर्याप्तियोंके निष्पादनार्थ जो पुद्गलपरमाणुओंका उपकार है वह बहुत साधारण जीवोंका अनुग्रहण है और इसका भी है तथा बहुत जो अनुग्रहण है वह निकलकर इस विवक्षित जीवका अनुग्रहण है तथा अन्य प्रत्येकका जीवोंका भी है ॥ १२३ ॥
समगं वक्कताणं समगं तेसिं सरीरणिप्पत्ती । समगं च अणुग्गहणं समगं उस्सास-णिस्सासो ॥ १२४ ॥
एक ही निगोदशरीरमें आगे पीछे उत्पन्न होनेवाले अनन्त जीवोंके शरीरकी निष्पत्ति एक साथ होती है, अनुग्रहण एक साथ होता है, और उच्छ्वास-निःश्वास भी एक साथ होता है ।
जत्थेउ मरइ जीवो तत्थ दु मरणं भवे अणंताणं । वक्कमइ जत्थ एक्को वक्कमणं तत्थणंताणं ॥ १२५ ॥
जिस शरीरमें एक जीव मरता है वहां अनन्त जीवोंका मरण होता है और जिस शरीरमें एक जीव उत्पन्न होता है वहां अनन्त जीवोंकी उत्पत्ति होती है ॥ १२५ ॥ :
बादरसुहमणिगोदा बद्धा पुट्ठा य एयमेएण । ते हु अणंता जीवा मूलयथूहल्लयादीहि ॥ १२६ ॥
बादर निगोद जीव और सूक्ष्म निगोद जीव ये परस्परमें बद्ध और स्पृष्ट होकर रहते हैं । तथा वे (बादर ) अनन्त जीव मूली, थूवर और आर्द्रक आदिके निमित्तसे होते हैं ।। १२६ ॥
अत्थि अणंता जीवा जेहि ण पत्तो तसाण परिणामो । भावकलंकअपउरा णिगोदवासं णं मुंचंति ॥ १२७ ॥
जिन्होंने अतीत कालमें त्रस पर्यायको नहीं प्राप्त किया है ऐसे अनन्त जीव हैं। वे अतिशय संक्लेशकी प्रचुरतासे निगोदवासको नहीं छोड़ते हैं ॥ १२७ ॥
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