Book Title: Shatkhandagam
Author(s): Pushpadant, Bhutbali,
Publisher: Walchand Devchand Shah Faltan
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५, ३, १६७] बंधणाणियोगद्दारे सरीरिसरीरपरूवणाएसंतपरूवणा
[७४३ परिहारविसुद्धिसंजदा सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजदा जहाक्खाद-विहार-सुद्धिसंजदा अस्थि जीवा तिसरीरा ॥ १५७॥
परिहारशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसाम्पराय-शुद्धि-संयत और यथाख्यात-विहार-शुद्धिसंयत जीव तीन शरीरवाले होते हैं ॥ १५७ ।।
असंजदा ओघं ।। १५८॥ असंयत जीवोंकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ १५८ ॥ दसणाणुवादेण चक्खुदंसणी अचक्खुदंसणी ओहिदंसणी ओघं ॥१५९ ॥
दर्शनमार्गणाके अनुवादसे चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी और अवधिदर्शनी जीवोंकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ १५९ ॥
केवलदसणी अस्थि जीवा तिसरीरा ॥१६० ॥ केवलदर्शनवाले जीव तीन शरीरवाले होते हैं ॥ १६० ।। लेस्साणुवादेण किण्ण-णील-काउलेस्सिया तेउ-पम्म-सुक्क-लेस्सिया ओघं ॥१६१॥
लेश्यामार्गणाके अनुवादसे कृष्णलेश्यावाले, नीललेश्यावाले, कापोतलेश्यावाले, पीतलेश्यावाले, पद्मलेश्यावाले और शुक्ललेश्यावाले जीवोंकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ १६१ ॥
भवियाणुवादेण भवसिद्धिया अभवसिद्धिया ओघं ॥ १६२ ॥ भव्यमार्गणाके अनुवादसे भव्य और अभव्य जीवोंकी प्ररूपणा ओघके समान है ।
समत्ताणुवादेण सम्माइट्ठी खड्यसम्माइट्ठी वेदगसम्माइट्ठी उवसमसमाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी मिच्छाइट्ठी ओघं ॥ १६३ ॥
सम्यक्त्व मार्गणाके अनुवादसे सम्यग्दृष्टि क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि जीवोंकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ १६३ ॥
सम्मामिच्छाइट्ठीणं मणजोगिभंगो ॥ १६४ ॥ सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंकी प्ररूपणा मनोयोगी जीवोंके समान है ॥ १६४ ॥ सण्णियाणुवादेण सण्णी असण्णी ओघं ॥१६५॥ संज्ञीमार्गणाके अनुवादसे संज्ञी असंज्ञी जीवोंकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ १६५ ॥ आहाराणुवादेण आहारा मणजोगिभंगो ॥ १६६ ॥ आहारमार्गणाके अनुवादसे आहारक जीवोंकी प्ररूपणा मनोयोगी जीवोंके समान है ॥ अण्णाहारा कम्मइयभंगो ॥१६७ ॥ अनाहारक जीवोंकी प्ररूपणा कार्मणकाययोगी जीवोंके समान है ॥ १६७ ॥
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