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४, २, ७, ३७ ]
arrमहाहियारे वेयणभावविहाणे सामित्तं
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सामित्ण जहण्णपदे आउअवेयणा भावदो जहणिया कस्स ? ।। ३१ ।। स्वामित्वसे जघन्य पदमें आयुकी वेदना भावकी अपेक्षा जघन्य किसके होती है ? ॥ ३१ ॥ अण्णदरेण मणुस्सेण वा पंचिंदियतिरिक्खजोणिएण वा परियत्तमाणमज्झिमपरिणामेण अपज्जत्ततिरिक्खाउअं बद्धल्लयं जस्स तं संतकम्मं अत्थि तस्स आउअवेयणा भावदो जहण्णा || ३२ ॥
जिस अन्यतर मनुष्य अथवा पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिवाला जीवने परिवर्तमान मध्यम परिणामसे अपर्याप्त तिर्यंच सम्बन्धी आयुका बन्ध किया है उसके, और जिसके इसका सत्त्व होता है उसके आयुकी वेदना भावकी अपेक्षा जघन्य होती है ॥ ३२ ॥
यहां मनुष्य पदके द्वारा यह सूचित किया गया है कि देव और नारकी जीव अपर्याप्त तिर्यंच सम्बन्धी आयुको नहीं बांधा करते हैं । जो संक्लेश व विशुद्धिरूप परिणाम प्रतिसमय में वर्धमान और हीयमान होते हैं वे अपरिवर्तमान परिणाम कहलाते हैं और जिन परिणामोंमें अवस्थित रहते हुए परिणामान्तरको प्राप्त होकर एक दो आदि समयोंमें आना सम्भव है उनका नाम परिवर्तमान परिणाम है । ये उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्यके भेदसे तीन प्रकारके हैं । उनमें अतिशय जघन्य व अतिशय उत्कृष्ट परिणाम आयुबन्धके योग्य नहीं हैं । उन दोनोंके मध्य में जो परिणाम अवस्थित हैं उन्हें परिवर्तमान मध्यम परिणाम समझना चाहिये ।
तव्वदिरित्तमण्णा ॥ ३३ ॥
आयुकी उपर्युक्त उत्कृष्ट वेदनासे भिन्न उसकी जघन्य वेदना होती है ॥ ३३ ॥ सामित्तेण जहण्णपदे णामवेयणा भावदो जहण्णिया कस्स ! || ३४ ॥
स्वामित्व जघन्य पद में नामकर्मकी वेदना भावकी अपेक्षा जघन्य किसके होती है ? ॥
अण्णदरेण सुहुमणिगोदजीवअपज्जत्तएण हदसमुप्पत्तिय कम्मेण परियत्तमाणमज्झिमपरिणामेण बद्धल्लयं जस्स तं संतकम्ममत्थि तस्स णामवेयणा भावदो जहण्णा ||३५|| हत्तसमुत्पत्तिक कर्मवाला जो अन्यतर सूक्ष्म निगोद अपर्याप्तक जीव परिवर्तमान मध्यम परिणामके द्वारा कर्मका बन्ध करता है उसके और जिसके इसका सत्त्व है उसके नाम कर्मकी वेदना भावकी अपेक्षा जघन्य होती है ॥ ३५ ॥
छ. ७८
तव्वदिरित्तमण्णा ॥ ३६ ॥
उपर्युक्त नामकर्मकी जघन्य उत्कृष्ट वेदनासे भिन्न उसकी अजघन्य वेदना होती है ॥ सामित्ण जहण्णपदे गोदवेदणा भावदो जहणिया कस्स १ ।। ३७ ।। स्वामित्वसे जघन्य पदमें गोत्रकी वेदना भावकी अपेक्षा जघन्य किसके होती है ? ॥३७॥
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